गुजरात दंगों के बाद आडवाणी ने बचाया था मोदी को

23 मार्च 2019
वाजपेयी को पूरी आशंका थी कि मोदी हिंसा नहीं रुकने देंगे और वे उन्हें हटाना भी चाहते थे. लेकिन उन्हें पता था कि उन्हीं के डिप्टी आडवाणी इसका पुरजोर विरोध करेंगे.
अजीत सोलंकी/एपी फोटो
वाजपेयी को पूरी आशंका थी कि मोदी हिंसा नहीं रुकने देंगे और वे उन्हें हटाना भी चाहते थे. लेकिन उन्हें पता था कि उन्हीं के डिप्टी आडवाणी इसका पुरजोर विरोध करेंगे.
अजीत सोलंकी/एपी फोटो

गुजरात दंगे सांप्रदायिक दंगों का वह पहला घमाका था, जो ठीक उसी समय टीवी पर लाइव दिखाया जा रहा था जिस वक्त वह जारी था. देश भर में लोग टीवी पर युवाओं को सड़कों पर आतंक फैलाते देखा रहे थे. जिसमें वे बदले की मांग कर रहे थे और मुसलमानों को देश छोड़ कर जाने को कह रहे थे. बीजेपी में, जिसके राष्ट्रीय नेतृत्व ने मोदी को महज पांच महीने पहले मुख्यमंत्री चुना था, गुजरात में हुए खून खराबे से पार्टी के अंदर फूट पड़ गई. कट्टर नेताओं ने मोदी का पुरजोर समर्थन किया. लेकिन नरमपंथियों को डर था कि उदारवादी हिंदू जो बीजेपी को “बाकी पार्टियों से अलग” मानते हैं, वे पार्टी में उग्र हिंदुत्व के उभार को देखकर पार्टी से दूर हो जाएंगे. जब दंगे बिना रुके जारी रहे तो विदेशी सरकारों ने पीएम कार्यालय पर दबाव डालना शुरू किया और वाजपेयी हरकत में आए. मोदी के करीबी बीजेपी नेता ने मुझे बताया, “मोदी और वाजपेयी के बीच का रिश्ता काफी खीज से भरा था. मोदी को वाजपेयी के धुर ब्राह्मण चरित्र- उनकी उम्दा पसंद, उनकी कविता- से ही दिक्कत थी और वाजपेयी मोदी को बहुत ‘भोंडा’ समझते थे.” वाजपेयी को इसकी पूरी आशंका थी कि मोदी हिंसा नहीं रुकने देंगे. वे मोदी को हटाना चाहते थे. लेकिन उन्हें पता था कि उन्हीं के डिप्टी आडवाणी और आरएसएस इसका पुरजोर विरोध करेंगे.

उदारवादी खेमे से तब के कैबिनेट मंत्री शांता कुमार ने कहा, “मृतकों के शरीर पर वोट गिनने वाला हिंदू नहीं होता. जो लोग खून बहाकर गुजरात में हिंदुत्व को मजबूत कर रहे हैं वे हिंदुओं के दुश्मन हैं.”

उदारवादी खेमे से मोदी को चुनौती देने वाले पहले व्यक्ति शांता कुमार थे. वे तब के कैबिनेट मंत्री और हिमाचल के सीएम रह चुके थे. उन्होंने कहा कि गुजरात की हिंसा से उन्हें दर्द हुआ है और वे खिन्न हैं. साथ ही कुमार ने वीएचपी और बजरंग दल के खिलाफ एक्शन की मांग भी की. उन्होंने घोषणा की, “मृतकों के शरीर पर वोट गिनने वाला हिंदू नहीं होता. जो लोग खून बहाकर गुजरात में हिंदुत्व को मजबूत कर रहे हैं वे हिंदुओं के दुश्मन हैं.” इस बयान से आरएसएस आग बबूला हो गया. कुमार का ये बयान गोवा में होने वाली बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के कुछ दिन पहले आया था. संघ के नेता नहीं चाहते थे कि पार्टी के उदारवादियों के चक्कर में उनके फुल टाइम प्रचारक से सीएम बने पहले व्यक्ति का कार्यकाल समाप्त हो जाए. बीजेपी अध्यक्ष के. जन कृष्णमूर्ति ने कुमार को बुलावा भेजा. वहीं, आडवाणी ने घोषणा की कि पार्टी का कोई भी सदस्य अगर अनुशासनहीनता करते पाया गया तो उसके खिलाफ कर्रवाई होगी. कुमार को दो माफीनामे लिखने को मजबूर किया गया. पहला, कृष्णमूर्ति को और दूसरा, वीएचपी के आरएसएस इंचार्ज को. उन्हें वह बयान भी वापस लेना पड़ा, जिसमें कहा गया था कि वीएचपी ने पूरे हिंदू समाज को कलंकित किया है.

उदारवादियों में इस बात की चिंता थी कि अगर किसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया तो बीजेपी की गठबंधन सरकार गिर जाएगी. लेकिन इसका संघ पर कोई असर नहीं पड़ा. बीजेपी के एक पूर्व राष्ट्रीय सचिव के मुताबिक, ताकतवर आरएसएस नेता और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे ने पार्टी के बाकी नेताओं में यह बात फैलाई कि मोदी का बचाव किया जाना चाहिए फिर चाहे वाजपेयी की सरकार चली ही क्यों न जाए. इस पूर्व बीजेपी सचिव ने बताया, “पार्टी में लॉबिंग और इसके विरोध में लॉबिंग हो रही थी. अंत में ठाकरे, आडवाणी, मोदी और जेटली का खेमा, वाजपेयी खेमे पर भारी पड़ा गया.”

“मोदी और वाजपेयी के बीच का रिश्ता काफी खीज से भरा था. मोदी को वाजपेयी के धुर ब्राह्मण चरित्र- उनकी उम्दा पसंद, उनकी कविता- से ही दिक्कत थी और वाजपेयी मोदी को बहुत ‘भोंडा’ समझते थे.”

विनोद के जोस कारवां के कार्यकारी संपादक हैं.

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