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8 फरवरी 2024 को हल्द्वानी जिला प्रशासन ने बनभूलपुरा के मलिक का बगीचा इलाके में मरियामा मस्जिद और रज्जाक जकारिया मदरसे को बुलडोजर से गिरा दिया. प्रशासन का दावा है कि ये निर्माण अवैध हैं. प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद शुरू हुई हिंसा में अब तक 7 लोगों की मौत हुई है. मरने वाले 6 मुस्लिम हैं और एक हिंदू है. हिंसा में 300 से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं, जिसमें कोतवाल समेत 150 पुलिस कर्मी और पत्रकार शामिल हैं. 70 से ज्यादा वाहन और एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया गया. प्रशासन के अनुसार, 2.44 करोड़ रुपए की संपत्ति नाश हो गई है.
स्थानीय मुसलमानों ने बताया कि पुलिस ने उनके घरों में काफी तोड़-फोड़ की और औरतों के साथ मारपीट की. हालांकि घटना में मारे गए लोगों की आधिकारिक संख्या 7 बताई जा रही है लेकिन स्थानीय लोगों ने दावा किया कि संख्या 15 से 18 के बीच है. साथ ही यह भी बताया कि 100 से ज्यादा लोगों को पुलिस उठा ले गई है. इस बीच पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई से बचने और अपनी जिंदगी की सलामती की सोच कर इलाके से भारी संख्या में लोगों का पलायन हर वक्त जारी है. 300 से ज्यादा घरों में ताले लटके बताए जा रहे हैं. चर्चा इससे कहीं ज्यादा की है.
8 फरवरी की शाम लगभग पांच बजे शुरू हुई हिंसा चंद घंटों में “उपद्रवियों को देखते ही गोली मार” देने के आदेश तक पहुंच गई. रात होते-होते पूरे शहर का इंटरनेट बंद कर दिया गया और रात 9 बजे डीएम के आदेश से अगले आदेश तक पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया. हालांकि स्थानीय लोगों ने बताया कि इससे पहले ही पुलिस सीधी गोलाबारी कर चुकी थी. इस तथ्य को एसएसपी प्रहलाद नारायण मीणा के बयान से भी पुष्टि मिलती है. उन्होंने इसे “स्टेट और सरकारी मशीनरी पर हमला” बताते हुए कहा कि जब बनभूलपुरा थाने पर हमला हुआ तो अधिकारी और कर्मचारी फंस गए. “उपद्रवियों की तरफ से गोली चल रही थी. ऐसे में थाने पर कब्जा लेने और अधिकारियों और कर्मचारियों को बचाने के लिए गोली चलाने का आदेश दिया गया था.” उन्होंने कहा, “मामले में कार्रवाई नजीर बनेगी. उपद्रवियों ने अतिक्रमण स्थल को बचाने के लिए नहीं बल्कि राज्य को चुनौती देने के लिए हमला किया था.”
हालांकि नैनीताल की डीएम वंदना सिंह ने कहा कि, “भीड़ ने थाने को घेर लिया और थाने के अंदर मौजूद लोगों को बाहर नहीं आने दिया गया. उन पर पहले पथराव किया गया और फिर पेट्रोल बम से हमला किया गया. थाने के बाहर वाहनों में आग लगा दी गई और धुएं के कारण दम घुटने लगा. पुलिस थाने की सुरक्षा के लिए ही आंसू गैस और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया.”
एसएसपी मीणा ने माना कि, “हमारी तैयारी पूरी थी. चूक कहां हुई इसका पता लगाया जा रहा है.” डीएम वंदना ने भी माना, ''तैयारी पूरी थी कोई कमी नहीं थी.” लेकिन उन्होंने यह भी माना कि “जिस तरह टीम पर हमला किया गया यह सुनियोजित और योजनाबद्ध हमला था जिसकी तैयारी पहले से की गई थी.”
बीती 29 जनवरी को नगर निगम ने बनभूलपुरा क्षेत्र के मलिक का बगीचा में करीब दो एकड़ जमीन से अतिक्रमण ध्वस्त कर तारबाड़ करा दी थी. इस बीच वहां बने मदरसा और मस्जिद के बाहर नोटिस चस्पा कर 1 फरवरी तक खुद हटाने की हिदायत दी गई थी. मियाद खत्म होने पर निगम ने चार फरवरी को निर्माण तोड़ने का फैसला लिया था. नोटिस चस्पा होने के बाद मस्जिदों के इमाम और जनप्रतिनिधियों ने 3 फरवरी को नगर निगम सभागार में सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह, तत्कालीन नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय और एसडीएम परितोष वर्मा के साथ वार्ता की, जो बेनतीजा रही.
फरियादियों ने कहा कि मस्जिद और मदरसे को न तोड़ा जाए. उन्होंने प्रशासन से वक्त मांगा और कहा कि वह जमीन की फ्री होल्ड की फीस 24 घंटे में जमा कर देंगे. फरियादियों ने बताया कि उनके घरों में नमाज पढ़ने के लिए जगह नहीं है, इसलिए वे कई साल से यहां पर बनी मस्जिद में नमाज अदा कर रहे हैं. निवर्तमान पार्षदों ने कहा कि यह जगह मलिन बस्ती ए कैटेगिरी में आती है. मलिन बस्ती के नियमानुसार यहां पर मालिकाना हक दिया जाना है. उन्होंने इसके लिए प्रशासन से रिसीवर बैठा देने की बात कही. इस पर तत्कालीन नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने जवाब दिया कि नगर निगम के रिकॉर्ड में मलिक का बगीचे का कोई अस्तित्व नहीं है. यह नजूल भूमि है, सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है, शासन का आदेश है, मैं इसमें कोई मदद नहीं कर सकता हूं. इमाम और जनप्रतिनिधियों ने इसे अपनी आस्था का केंद्र बताते हुए उनसे मदद की गुहार की. इस पर उपाध्याय ने नोटिस वापस लेने से साफ मना करते हुए कहा कि उनके पास नोटिस वापस लेने का कोई अधिकार नहीं है. नजूल नियमों के मुताबिक यह जमीन नगर निगम की है. उन्होंने कार्रवाई रोकने से इनकार कर दिया. फरियादियों ने फिर फरियाद करते हुए कहा कि उन्हें न्यायालय जाने का मौका दीजिए. तब तक वहां रिसीवर बैठा दीजिए. उन्होंने यथास्थिति बनाए रखने की भी बात की. उन्होंने कहा कि अदालत का जो भी फैसला होगा वे उसे माने लेंगे. लेकिन इन तमाम बातों का प्रशासन के इरादों पर कोई असर नहीं पड़ा.
3 फरवरी की शाम को पुलिस ने इलाके में फ्लैग मार्च किया. स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया. इधर, पुलिस और प्रशासन कार्रवाई की तैयारियों में जुटे थे. मौके पर बेरिकेड्स मंगाए जाने लगे और जिले भर की पुलिस को बुला लिया गया.
हालांकि देर रात सरकारी महकमे ने बुलडोजर चलाने का इरादा टाल दिया. तत्कालीन नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने बताया कि देर रात उनके पास एक दरख्वास्त आई थी. ''इसमें 2007 में हुए हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया था. इस आदेश के क्रम में कुछ लोगों के प्रार्थना पत्र का निस्तारण नहीं हो पाया है. इनका निस्तारण एडीएम नजूल की तरफ से किया जाना है. नगर निगम से भी इस मामले में एडीएम ने जवाब मांगा है. दो दिन में उत्तर दे दिया जाएगा. अंतिम निर्णय जिला प्रशासन का होगा.'' हालांकि सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह ने इस बाबत एक अलग बात बताई, ''रेलवे इस जगह को अपनी जगह बताता है. इस मामले में रेलवे ने पूर्व में वहां के लोगों को नोटिस दिया था. हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए हैं. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इस कारण यह कार्रवाई रोकी गई है. जल्द ही इस मामले में निर्णय लिया जाएगा.'' (रेलवे बनाम बनभूलपुरा मामले में रेलवे के दावों की पड़ताल करने की कोशिश अपनी पिछली रिपोर्ट में हम कर चुके हैं. हमारी पड़ताल रेलवे के दावों को खोखला पाती है.)
सिंह ने जारी किए प्रेस नोट में बताया कि नगर निगम में बनभूलपुरा इलाके की सरकारी जमीन पर बनी दो इमारतों के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई प्रस्तावित थी. हाईकोर्ट के आदेशों के क्रम में प्रत्यावेदन का निस्तारण किया जाना है. निस्तारण की कार्रवाई पूरी होने तक ध्वस्तीकरण की कार्रवाई रोकने के निर्देश नगर आयुक्त को दिए गए हैं. संबंधित निर्माण को सील कर दिया गया है.
इस बाबत हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश ने बताया कि जब ध्वस्तीकरण की बात सामने आई, तो क्योंकि उन्हें पता था कि यह एक संवेदशील मसला है. ''हम नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के पास गए. इसके बाद यशपाल आर्य ने मुख्यमंत्री को फोन मिलाया. मैंने भी मुख्यमंत्री जी से बात की और उनसे निवेदन किया कि कार्रवाई फिलहाल न की जाए, इन्हें अदालत जाने का वक्त दिया जाए.'' हालांकि इसके बाद ही बुलडोजर चलाने की पूरी तैयारी के बीच आनन-फानन देर रात में ही सीलिंग की कार्रवाई कर दी गई थी.
सरकारी अमले की इस पूरी कवायद के मुख्य कर्ताधर्ता बतौर तत्कालीन नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय का नाम शहर में इन दिनों आम है. विधायक हृदयेश ने बिना उनका नाम लिए कहा, ''एकाएक धार्मिक स्थल को तोड़ने की कार्रवाई की गई. इस बारे में वहां के जनप्रतिनिधि और वरिष्ठ लोगों को भरोसे में लेना प्रशासन ने जरूरी नहीं समझा. यहां 15 साल से जिले में जमे एक अधिकारी के इशारे पर इस तरह से कार्रवाई कर दी, जिससे माहौल बिगड़ गया. उनका बयान भी हमेशा भड़काऊ रहता है, जिससे लोग आहत भी होते हैं.''
30 जनवरी को नगर आयुक्त जब ''अतिक्रमण'' हटाने पहुंचे थे तो स्थानीय औरतों के साथ उनकी नोंक-झोंक हुई थी. 3 फरवरी को वह फिर से उसी ''अतिक्रमण'' को हटाने के लिए दुबारा दल-बल के साथ पहुंच गए. देर रात मदरसे और मस्जिद में सील लगाने की एक धुंधली वजह बता कर 8 फरवरी को वह फिर से नामुदार हुए. लेकिन 10 फरवरी का तबादले का शासनादेश कुमाउं मंडल विकास निगम के महाप्रबंधक पद से उनकी तैनाती उधमसिंह नगर के अपर जिलाधिकारी (प्रशासन/नजूल) पद पर करता है. महानिदेशक पद उनकी तैनाती के आदेश हालांकि 31 जनवरी को ही आ गए थे. इधर स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया इसे उपाध्याय को मिली सजा के तौर पर पेश कर रहा है, यह उनकी पदोन्नती है.
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टीं के अध्यक्ष पी. सी. तिवारी कहते हैं, ''इस तरह के ट्रेंड को भी देखा जाना चाहिए. बनभूलपुरा में रेलवे मामले पर ध्वस्तीकरण का फैसला देने वाले जज रिटायर होते ही उत्तराखंड रियल स्टेट ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष बना दिए गए."
जारी हिंसा पर प्रेस को संबोधित करते हुए वंदना सिंह ने कहा, ''यह सांप्रदायिक घटना नहीं थी. तो इसे सांप्रदायिक या संवेदनशील न बनाया जाए. किसी विशेष समुदाय ने जवाबी कार्रवाई नहीं की. यह राज्य मशीनरी, राज्य सरकार और कानून व्यवस्था की स्थिति को चुनौती देने का एक प्रयास था.'' यह बात भी गौर करने लायक है कि डीएम वंदना अपने आदेश में उपद्रवियों की पहचान पहले ही कर चुकी थीं. 8 तारीख का आदेश ''समुदाय विशेष'' द्वारा विरोध/आगजनी/पथराव के चलते पैदा हुए संकट को ध्यान में रख कर्फ्यू की घोषणा करता है.
10 फरवरी को बनभूलपुरा पहुंचने पर, तब तक कर्फ्यू लगे 40 से ज्यादा घंटे बीत चुके थे, मैंने पाया कि गलियां सुनसान थीं. कहीं-कहीं लोग पुलिस, फोर्स से नजरें बचाते अपने दरवाजों पर टहल रहे थे. खाकी की हल्की सी झलक उन्हें अपनी जगह से खिसका दे रही थी.
मेरी पहली मुलाकात अपनी सीढ़ियों पर बैठे एक हिंदू युवक से हुई जिसने बताया कि उसका परिवार पुश्तों से यहीं रह रहा है. उसने कर्फ्यू की वजह से काम बंद होने पर चिंता जताई लेकिन आजू-बाजू मुस्लिम समुदाय के रहने से उन्हें कोई चिंता नहीं थी. ''इस घर में मैं पांचवी पीढ़ी हूं,'' उसने कहा.
थोड़ा आगे बढ़ने पर कुछ मुस्लिम नौजवान छज्जे की ओट में दिखे. उन्होंने बताया कि इलाके में ज्यादातर सभी लोग छोटा-मोटा काम-धाम करते हैं. सुबह जाते हैं शाम को लौटते हैं. प्रशासन की तरफ से मदरसा और मस्जिद सीज होने के बाद शायद ही उस तरफ किसी का ध्यान था. सब अपने काम पर थे. उन्होंने घटना के पूर्वनियोजित होने की प्रशासन की बातों को भी खारिज कर दिया. उन्होंने बताया कि जब बलवा हो गया उसके बाद जा कर भगदड़ में यहां लोगों ने अपनी दुकानें बंद की. ''अगर पहले से योजना होती तो क्यों मारे-मारे फिरते भला'' एक युवक ने कहा. उन्होंने एक और इत्तेफाक की ओर इशारा करते हुए बताया कि 8 फरवरी के दिन इलाके के ज्यादातर तजुर्बेकार बुजुर्ग मौलवी लोग किन्हीं मौलवी साहब के इंतकाल पर मेरठ गए हुए थे.
स्थानीय लोगों ने यह आशंका भी जाहिर की कि उपद्रवी स्थानीय लोग नहीं थे. कुछ लोगों ने उपद्रवियों की भाषा पर भी गौर किया. खुद बनभूलपुरा के लोगों ने इलाके की एक दवा की दुकान को उपद्रवियों द्वारा आग के हवाले करने से बचाया. उन्होंने बताया कि उपद्रवी जिस लहजे में बोल रहे थे वह इस इलाके के लहजे से एकदम अलग था. पुलिस ने भी जल्द मान लिया हिंसा के तार रामपुर, बरेली वगैरह से जुड़े हैं. पुलिस का दावा है कि इस बाबत उसे अहम सबूत मिले हैं और पुलिस की टीमें पश्चिमी यूपी रवाना हो गई हैं.
स्थानीय लोगों ने बलवे के पीछे गांधीनगर की वाल्मिकी बस्ती के लोगों का हाथ होने की भी बात कही. उन्होंने बताया कि जब प्रशासन मस्जिद और मदरसा तोड़ रहा था तो वे ढोल बजा कर जय श्री राम के नारे लगा रहे थे. लोगों ने वाल्मिकी बस्ती से गोली चलते की भी बात की. बनभूलपुरा में अलग-अलग जगहों पर कई लोगों ने संजय सोनकर के घर से गोली चलने की बात भी कही. पुलिस के बर्ताव से भी मुस्लिम युवक बेहद खौफजदा नजर आए. उन्होंने बताया कि मशीनगन का इस्तेमाल हुआ था. एक युवक ने कहा, “सुबह-सुबह पुलिस वाले खोखे बटोर रहे थे.” “कई सौ फायर हुए,” दूसरे नौजवान ने बताया. लोगों ने बताया कि घटना के दिन से ही पुलिस लगातार गश्त कर रही है. रात को दरवाजे तोड़ कर लोगों को उठा रही है. लोगों ने बताया कि पुलिस गालियां देती है, “अब बाहर निकलो बहनचोदों तुम्हारी गांड में गोली मारेंगे. अब है गोली मारने का टाइम.” एक नौजवान ने कहा, “5000 लोगों पर जब मुकदमा दर्ज है, तो उसे भरने के लिए लोगों को उठा रहे हैं.” इस बीच लोगों को सबसे चुभने वाली बात यह लगी कि पुलिस भारत माता के जय के नारे लगा रही थी जो बेवजह फिर भी जायज है लेकिन “जय श्री राम” के नारों के साथ दहशतगर्दी मचाने का भला पुलिस का क्या काम. लोगों की बातों में यकीन न करने की कोई खास वजह नहीं थी. आपबीती इसकी एक बड़ी नजीर पेश कर गई.
मलिक का बगीचा यानी घटना स्थल से तकरीबन 2.5 किलोमीटर दूर वार्ड नं. 24 में 10 तारीख की सुबह ही पुलिस चिराग अली शाह बाबा की दरगाह के परिसर में खड़ी गाड़ियों के शीशे पत्थरों से तोड़ गई, ऐसा वहां मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया. दरगाह में सेवादारी करने वाले 50-55 साल के एक मूक-बधिर, जिसे ''लाटा'' कह कर संबोधित किया जा रहा था, को पीट-पीट कर पुलिस अपने साथ ले गई. ''पुलिस ने कहा बहनचोद थाने में आग लगाओगे,'' जिस शख्स ने यह बात बताई उसने यह भी बताया कि पुलिस ने दरगाह में लात मारी, गालियां दी और बंदूक उनके मुंह पर तान दी और पीटा. बहुत गिड़गिड़ाने के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. उसने यह भी बताया कि पुलिस की इस हरकत पर एक दरोगा ने ही सिपाहियों को डांट लगाई और कहा तुम्हें सब देख रहे हैं तुम ही ऐसा करोगे तो क्या होगा.
मैं यहां से निकल ही रहा था कि पुलिस ने रोक लिया और मां-बहन की गालियां देने लगी. यह बताने पर कि प्रेस से हैं, पुलिसबल का पारा एकदम चढ़ गया. ''इन मां के लौड़ों की रिपोर्टिंग करेगा?'' स्क्रॉल.कॉम के एक रिपोर्टर को भी उसी वक्त रोक लिया गया था. हम दोनों को थाने ले जाने के लिए आवाज का वजन बढ़ता ही जा रहा था. प्रेस कार्ड दिखाने के बाद आधार कार्ड मांगा गया. स्थानीय हिंदू के रूप में मेरी पहचान कर लेने के बाद एक अन्य पुलिस कर्मी ने अपनी आवाज को थोड़ा नरम किया और यह कहते हुए कि, ''जानते भी हो कहां जा रहे हो, काट के रख देंगे ये लोग,'' फौरन बनभूलपुरा से निकल जाने की सलाह दी.
स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि बनभूलपुरा के पूरे इलाके को जिस तरह से सीज किया गया है उसके चलते छोटे बच्चों के लिए दूध जैसी जरूरी सामान की किल्लत हो गई है. साग-सब्जियां नहीं है. दुकानें बदं होने के चलते घर के सामान तक के लाले हैं. लोगों ने बताया कि इलाके कि ज्यादातर आबादी बेहद कम आमदनी के चलते रोज की ग्राहक है. अपने जानवरों को खिलाने के लिए लोगों के पास चारा तक नहीं है. हालांकि देर शाम प्रशासन ने इसकी कुछ व्यवस्था की ऐसी खबरें अगले दिन प्रकाशित हुईं.
स्थानीय लोगों ने बताया कि 9 तारीख से ही पानी नहीं आया है. पानी की तलाश में लोग एक-दूसरे के घरों में जा रहे हैं लेकिन हर वक्त डर के माहौल में कभी भी भगदड़ हो जा रही है. 10 फरवरी की शाम इलाके में गए एक साथी पत्रकार ने एक घटना का जिक्र किया कि कैसे एक ही परिवार की तीन बच्चियां जब प्लास्टिक के डब्बों में पानी भरने दूसरी गली में गईं जहां किसी के घर पानी आ रहा था कि तभी अचानक पुलिस के आने का रौला हो गया और लोग भगदड़ मच गई. इधर बच्चियां पानी भर रहीं थी उधर किसी पुलिस वाले ने बाहर से कुंडी लगा दी. वे बोलती रहीं कि दरवाजा खोलो लेकिन किसी ने खोला नहीं. किसी तरह काफी देर बाद वे निकल कर अपने घर पहुंच पाईं. इससे इलाके में अलग तरह की दहशत है.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घटना की रात ही उच्च स्तरीय बैठक की. हिंसा का जायजा लेने धामी 9 फरवरी को हल्द्वानी पहुंचे. धामी ने कहा, “न्यायालय के आदेश पर अतिक्रमण हटाने का काम चल रहा था. अतिक्रमण हटाने के दौरान हमला हुआ है. जिसने भी कानून तोड़ने का काम किया है कानून उसके साथ सख्ती से काम करेगा. हम दंगाइयों को नहीं बख्शेंगे.” उन्होंने कहा, “देवभूमि उत्तराखण्ड की शांति एवं सौहार्द बिगाड़ने वालों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा. हम दंगाइयों पर इतनी सख्त कार्रवाई करेंगे कि यह कार्रवाई भविष्य के लिए मिसाल बन जाएगी.”
इससे पहले मुख्यमंत्री ने घटनास्थल का निरीक्षण किया था और अधिकारियों को जरूरी दिशानिर्देश भी दिए. इसके बाद मुख्यमंत्री धामी ने अस्पताल जाकर घायल पुलिसकर्मी और पत्रकारों से मुलाकात की और उनका हालचाल जाना था. लेकिन धामी मृतकों के परिजनों से मिले हों इसकी कहीं कोई जानकारी नहीं है.
बनभूलपुरा के एक मायूस मुस्लिम नौजवान ने कहा, ''जहां मौत हुई उनका हाल-चाल भी धामी जान लेते तो कुछ यकीन बचता.'' नौजवान ने बताया, ''कफन-दफन में भी घर के दो-चार लोग जा पा रहे हैं और बिना दुआ के ही पुलिस की मौजूदगी में सुपुर्दे खाक किया जा रहा है.''
हल्द्वानी हिंसा की इस घटना को पिछले कुछ वक्त से उत्तराखंड में जारी मुस्लिम विरोधी घटनाक्रमों की कड़ी में देखा जा रहा है. राज्य में जारी “नफरत नहीं रोजगार दो” अभियान से जुड़े मुनीष कुमार कहते हैं, “राज्य में यह कोई पहली घटना नहीं जब मुस्लिम आबादी को निशाना बनाया जा रहा है.” उन्होंने कहा, “धामी सरकार की रहनुमाई में जगह-जगह मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं. पुरोला में हिंदुत्वादियों और एक पत्रकार की साजिश का शिकार वहां के मुसलमानों को होना पड़ा. वहां के बीजेपी अल्पसंख्यक दल के नेता तक को खौफ में घर छोड़कर मजबूरन जाना पड़ा.” उन्होंने कहा, “ऐसी तमाम घटनाओं के बावजूद जहां हिंदुत्ववादी ताकतें साजिशन एक खास समुदाय को निशाना बना रही हैं, धामी अपने भाषणों में नफरत ही बोते हैं. जमीन जेहाद और मजार जेहाद के नाम पर 3000 से ज्यादा मजार ध्वस्त कर दी गईं हैं.” उन्होंने बताया कि रामनगर के पास थापली बाबा की 150 साल पुरानी मजार को अतिक्रमण बता कर शहीद कर दिया गया जबकि हिंदू भी वहां चादर चढ़ाते थे, मन्नत मांगते थे. कुमार कहते हैं, “सरकार रोजगार देने में नाकाम रही है, इसलिए नफरत बो कर भरपाई कर रही है.”
7 अप्रैल 2023 को नैनीताल के पास एक सार्वजनिक बैठक में, धामी ने दावा किया था कि कम से कम एक हजार स्थानों की पहचान की गई है जहां राज्य की भूमि पर अवैध मजार और “अन्य संरचनाएं” बनाई गई थीं. उन्होंने कहा, “हम भूमि जिहाद को पनपने नहीं देंगे.” उन्होंने ट्वीट किया था, “हम उत्तराखंड में अवैध मजारों को ध्वस्त कर देंगे. यह नया उत्तराखंड है. यहां जमीन पर अतिक्रमण करने के बारे में किसी को सोचना भी नहीं चाहिए, करना तो दूर की बात है.”
कारवां में प्रकाशित एक लंबी रिपोर्ट में मुख्यमंत्री धामी की नए उत्तराखंड की “देवभूमि” की अवधारणा को सामने लाने की कोशिश की गई है. रिपोर्ट बीजेपी और संघ की देवभूमि में मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं पाती.
वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के संयोजक तरुण जोशी लंबे वक्त से राज्य में भू बंदोबस्ती के सवालों पर संघर्षरत रहे हैं. जोशी कहते हैं, “राज्य भर में भू बंदोबस्ती से जुड़ी समस्याएं हैं. सरकारों की शह पर जमीनों की लूट चल रही है और इसका खामियाजा आम जनता उठा रही है. लेकिन इस तरह घेर कर निशाना एक ही समुदाय को बनाया जा रहा है.” उन्होंने बताया कि उधमसिंहनगर, हरिद्वार, रामनगर, नैनीताल, देहरादून जैसे शहरों में नजूल भूमि है. रुद्रपुर में करीब 24 हजार परिवार नजूल की जमीन पर बसे हुए हैं, शहरों में प्रमुख बाजार नजूल की जमीन पर बसे हैं. इसके चलते नजूल का नियमितिकरण इन शहरों में एक बड़ा मुद्दा रहा है. उन्होंने बताया कि आवास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में करीब 392024 हेक्टेयर नजूल भूमि है. “लेकिन अतिक्रमण वहीं चिन्हित हैं जहां मुस्लिम, दलित, पिछड़ी, गरीब आबादी रहती है,” जोशी ने कहा. अतिक्रमण की आड़ में “एक खास आबादी के नाम पर शोर मचाने के बीच दलित, पिछड़ों और गरीबों को भी उनकी जगहों से उजाड़ा जा रहा है.”
हल्द्वानी शहर में कई मंदिर नजूल की जमीन पर आज भी कायम हैं. शहर में सड़क चौड़ीकरण की जद में कई दुकानें हैं जिनमें एक मंदिर भी है. नगर निगम की ओर से दुकानों को तोड़ने के आदेश हैं और मंदिर को पीछे खिसकाया जाएगा. मस्जिद और मदरसा अतिक्रमण ढहाने गए पूर्व नगर आयुक्त का एक बयान दैनिक अखबार अमर उजाला में छपा है. उन्होंने कहा था कि अतिक्रमण तोड़ने की शुरूआत कहीं से तो करनी ही है.
ऐसे हालात में घटना की न्यायिक जांच की मांग स्थानीय सामाजिक, राजनीतिक संगठन उठा चुके हैं लेकिन फिलहाल कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत को प्रशासनिक जांच के आदेश देते हुए 15 दिन में रिपोर्ट मांगी गई है. उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के तिवारी कहते हैं, “जब सरकार ही खुद जांच के घेरे में है तो उसके ही अधिकारी को जांच सौंपना न्याय का प्रहसन ही है. प्रशासनिक जांच का कोई औचित्य नहीं.”
इस बीच नफरत शहर भर में रिस रही है. शहर के ही दमुवाढूंगा के मल्ला चौफला क्षेत्र में राजू आर्या के घर में रह रहे एक मुस्लिम परिवार को फौरन घर खाली कराने के लिए कुछ लोग पहुंच गए. इसकी जानकारी मिलने पर पुलिस भी मौके पर पहुंच गई. पुलिस के मौके पर पहुंचने का नतीजा यह रहा कि अब परिवार को घर छोड़ने के लिए पांच दिन का वक्त मिल गया है.
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