बिहार से बीजेपी सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद, डीडीसीए में घपले को लेकर अरुण जेटली के खिलाफ लंबे समय तक अकेले विरोध का परचम उठाए रहे. (जेटली ने 2009 में आजाद को लोक सभा चुनावों में उनके निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी टिकट न मिल पाए इसकी कोशिश की), लेकिन 2011 तक विरोध करने वालों में कई पूर्व क्रिकेटर जुड़ चुके थे. बिशन सिंह बेदी, मनिंदर सिंह, मदन लाल और सुरिंदर खन्ना भी शामिल हो गए. कई डीडीसीए सदस्यों ने जेटली को पत्र लिखा, लेकिन किसी का जवाब नहीं आया. एक सदस्य दिनेश कुमार शर्मा ने 2011 में लिखा, “जब से आपने कमान संभाली है...मुझे खेद है कि डीडीसीए की साख लगातार नीचे गिरी है. यह इसलिए हुआ क्योंकि आपके अधीन आने वाली कार्यकारिणी समिति ने सभी वित्तीय तथा प्रशासनिक शक्तियां हड़प लीं, जिससे एसोसिएशन को बहुत वित्तीय घाटा उठाना पड़ा.”
क्रिकेट पत्रकार चंदर शेखर लूथरा ने मुझे बताया, “एक बार मैंने जेटली से पूछा कि ‘धर्मशाला के स्टेडियम को बनाने में महज 20 करोड़ रुपए का खर्चा आया और वह बहुत सुन्दर बनकर तैयार हुआ है. फिर ऐसा क्यों हुआ कि दिल्ली के स्टेडियम को बनवाने में इतना पैसा लगाने के बाद भी यह अब तक पहले जैसा ही है?’ इस सवाल का उन्होंने सिर्फ एक पंक्ति में जवाब दिया, ‘कुछ लोग मारूति चलाते हैं और कुछ लोग मर्सिडीज.’ मैं आज तक इसका मतलब नहीं समझ पाया,’” लूथरा ने कहा. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “लेकिन मैंने डीडीसीए के लोगों को उस वक्त से देखा है जब वे स्कूटर पर आते थे और आज वे मर्सिडीज में चलते हैं.”
मई 2012 में, डीडीसीए में चल रही हिसाब-किताब में गड़बड़ी को लेकर आजाद ने तत्कालीन कॉरपोरेट कार्य राज्य मंत्री आर.पी.एन सिंह को एक शिकायत पत्र लिखा. “खातों में बेहिसाब गड़बड़ियां की जा रही रही हैं और फर्जी बिल जमा कर हर साल 30 करोड़ रुपए का खर्च दिखाया जा रहा है”. उन्होंने वित्तीय घोटाले, सदस्यों को गलत तरीके से भुगतान और बिन टेंडर के गैरकानूनी खरीद-फरोख्त का दावा किया. उसी जुलाई में उन्होंने जेटली को भी एक खत लिखा, “मैं आपसे गुजारिश करता हूं कि मेरे या मेरी पत्नी के बारे में किसी धूर्तता भरे ‘लीक’ के जरिए कोई बेजा टिप्पणी करने से बचें.”
जब जेटली यूपीए सरकार के खिलाफ बहुत जोर-शोर से कोयला खदानों के आवंटन को लेकर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रहे थे, आजाद ने इस मामले को संसद के मानसून सत्र में उठाया. कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने आजाद के दावों की जांच के लिए सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिस (एसएफआईओ) की एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया. आजाद ने बताया, उन्हें “अपरोक्ष रूप से कई लोगों ने संपर्क किया” और पीछे हटने के लिए “कई तरह के प्रलोभन” दिए गए.
मार्च 2014 में, जब तक इस समिति की जांच पूरी हुई तब तक जेटली डीडीसीए के प्रेसिडेंट नहीं रहे थे. उन्होंने 2013 का चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि उनकी नजर बीसीसीआई (बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया) के शीर्षतम पद पर गड़ी होने की अफवाहें भी चल रही थीं. समिति की रिपोर्ट ने आजाद के आरोपों में सच्चाई पाई और इशारा किया कि डीडीसीए ने बुनियादी हिसाब-किताब रखने के मानदंडों का पालन नहीं किया है और उसने 20000 रुपए से ज्यादा की रकम के भुगतान के लिए चेक का इस्तेमाल नहीं किया गया. समिति ने इंटरनल ऑडिट पर जोर डाला, जिसमें और भी वित्तीय कुप्रबंधन के मामले उजागर हुए. रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज ने डीडीसीए और इसके तीन पदाधिकारियों – सुनील देव, एस पी बंसल और नरेंद्र बत्रा पर 4 लाख रुपए का जुर्माना ठोक दिया. इसके साथ-साथ देव और बंसल पर अतिरिक्त जुर्माना भी ठोका गया. हालांकि, अपनी नाक के नीचे होने वाले इस भ्रष्टाचार के लिए जेटली पर कोई आंच नहीं आई और वे साफ-साफ बच निकले.
डीडीसीए के सदस्य समीर बहादुर ने बताया, “बतौर प्रेसिडेंट वे यह नहीं कह सकते थे कि मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता.” एसोसिएशन की 2012 की वार्षिक आम बैठक के दौरान, जिसका विडियो भी मौजूद है, आजाद ने जेटली को चुनौती दी थी. “आपने यहां नकली प्रॉक्सी भेजे.” जेटली ने जवाब में कहा “आप मुझ पर मानहानि का दावा कीजिए. मैं कई चीजों को नजरंदाज करता आ रहा हूं और इसे भी करूंगा.” उन्होंने आजाद और अन्य को “शिकायतें करने वाली एजेंसी” को रंग में भंग डालने वाला कहा.
बहादुर का मानना है कि जेटली ने 2013 का चुनाव कंपनी कानून में संशोधन की वजह से नहीं लड़ा, क्योंकि अब इसमें धांधली के लिए थोड़े से जुर्माने का नहीं बल्कि जेल जाने का प्रावधान जोड़ दिया गया था. एसएफआईओ और आजाद जब भ्रष्टाचार के सबूत ढूंढने में लगे थे उसी वक्त जेटली प्रेसिडेंट की बजाय डीडीसीए के पैट्रन-इन-चीफ बन बैठे, जो भले ही एक अवैतनिक पद था लेकिन उसमें रुतबा बहुत था. अगस्त 2014 में जब जेटली ने वित्त मंत्रालय के साथ कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय का कार्यभार संभाला, तो आजाद ने डीडीसीए में भ्रष्टाचार का मुद्दा एक बार फिर संसद में उठाया. इसी साल जनवरी में, डीडीसीए ने प्रेसिडेंट एस.पी. बंसल और महासचिव अनिल खन्ना के खिलाफ कई कंपनियों के खाते में गैर कानूनी रूप से 1.55 करोड़ रुपए जमा कराने की शिकायत पुलिस में दर्ज करवाई. दोनों को डीडीसीए की कार्यकारिणी समिति ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. बहादुर ने बताया कानून में परिवर्तन की वजह से, “सी.के. खन्ना गुट ने, प्रेसिडेंट और महासचिव के खिलाफ कार्रवाई की. इससे पहले ये ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ जैसे थे और हर हिसाब के खाते पर आंख मूंदकर दस्तखत कर देते और जेटली दूसरी तरफ आंख फेर लिया करते थे.
आजाद ने बताया, “जैसा कि बिहार में कहते हैं, सैंय्या भये कोतवाल तो डर काहे का? हर साल 30 करोड़ रुपए का घपला हुआ है. लेकिन कोई इसके बारे में बात नहीं करता. वे बात करेंगे शारदा और अन्य घोटालों की लेकिन इसकी नहीं.” जेटली पर डीडीसीए में सीधे-सीधे भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे, लेकिन बहादुर जैसे लोगों ने उन पर अपनी नाक के नीचे भ्रष्टाचार को नजरंदाज करने के आरोप लगाए. “जेटली 30 करोड़ रुपए सालाना बजट के साथ खुद की कंपनी तो नहीं चलाते. वे देश के वित्त मंत्री होने के नाते क्या कर सकते थे?”
(कारवां के मई 2015 अंक में प्रकाशित कवर स्टोरी का अंश. पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें.)