बीजेपी में शिवराज का घटता कद, पार्टी में ओबीसी नेताओं का हमेशा यही हाल

17 नवंबर 2023
सितंबर 2018 में इंदौर आगमन पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत करते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. दोनों राजनेता उन गैर-प्रमुख ओबीसी नेताओं में से हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में बीजेपी में आने से पहले संघ में अपना करियर शुरू किया था.
प्रेस सूचना ब्यूरो
सितंबर 2018 में इंदौर आगमन पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत करते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. दोनों राजनेता उन गैर-प्रमुख ओबीसी नेताओं में से हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में बीजेपी में आने से पहले संघ में अपना करियर शुरू किया था.
प्रेस सूचना ब्यूरो

20 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के मतदाताओं के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक असाधारण अपील जारी की. इसमें उनसे मोदी को सीधा समर्थन देकर राज्य में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने को कहा गया. राज्य में 17 नवंबर को चुनाव होना है. अपील में सबसे ऊपर मोदी की तस्वीर थी. चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बस एक लाइन में जिक्र भी था. चुनाव प्रसार से जुड़ी तस्वीरों में मोदी आगे नजर आते हैं और शिवराज और अन्य नेता उनके पीछे.

चौहान की हालत यह बना दी गई है कि उनके बारे में बोली गई एक लाइन भी उपलब्धी की तरह बताई जा रही है. एक स्तंभकार ने लिखा है कि अब तक चौहान के लिए एक शब्द भी नहीं कहने वाले मोदी की अपील में चौहान का एक लाइन में जिक्र उपकार ही समझा जाना चाहिए. वह लिखते हैं, "चौहान के नाम का जिक्र नहीं किया था, उनकी उपलब्धियों का उल्लेख तो दूर की बात है." यहां तक कि बीजेपी से टिकट पाने के लिए भी चौहान को इंतजार करना पड़ा. उनका नाम चौथी सूची में आया.

घोषणा से पहले चौहान कुछ हताशा में अपने निर्वाचन क्षेत्रों में गए थे, “मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या मैं अच्छी सरकार चला रहा हूं या बुरी सरकार चला रहा हूं. तो क्या इस सरकार को आगे बढ़ना चाहिए या नहीं? क्या मामा को मुख्यमंत्री बनना चाहिए या नहीं?'' पार्टी ने उनके आखिरी सवाल का जवाब नहीं देने का फैसला किया है, लेकिन ऐसा लगता है कि मतदाताओं ने दूसरों के लिए अपने हिसाब से जवाब तैयार कर लिया है.

यहां तक कि उनके निर्वाचन क्षेत्र बुधनी में, जहां उन्हें भारी समर्थन हासिल है, ज्यादातर मतदाता यह मानने को तैयार थे कि चौहान सरकार को लेकर असंतोष है. बुधनी घाट पर मेरी बात पंडित आशीष दुबे से हुई. उन्होंने अपने नाम के आगे "पंडित" लगाने पर जोर दिया. पूरे राज्य में जाति की पहचान वोट के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन मध्य प्रदेश ने उत्तर प्रदेश और बिहार की तर्ज पर जाति आधारित सामाजिक आंदोलनों का मंथन नहीं देखा है. वर्ण व्यवस्था का पदानुक्रम यहां निर्विवाद बना हुआ है.

दुबे ने स्वीकार किया कि पूरे राज्य में बदलाव का मूड है. लेकिन उन्होंने वही दोहराया जो विभिन्न इलाकों और निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं ने दोहराया था: मोदी के लिए असंतोष नहीं है; वह इस मनोदशा से ऊपर और परे हैं. दुबे ने कहा, ''यही कारण है कि हमें राज्य में बीजेपी का समर्थन करना होगा. केंद्र में तो मोदी जी निर्विवाद बने रह सकते हैं लेकिन दो के बजाय दस राज्य सरकारों के समर्थन से आगे बढ़ने में एक फर्क है. हमें उनका अंतरराष्ट्रीय कद सुनिश्चित करना होगा.” और अगर राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं होगी तो वह हमारे लिए जो कर रहे हैं वह हम तक कैसे पहुंचेगा?”

हरतोष सिंह बल कारवां के कार्यकारी संपादक और वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक हैं.

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