पंकजा मुंडे कभी खुद को मानती थीं भावी मुख्यमंत्री, फडणवीस से कैसे हारीं रेस

मई 2015 में, पुणे में पंकजा मुंडे ने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि वह मुख्यमंत्री बनेंगी या बतौर मंत्री काम करती रहेंगी लेकिन उन्हें इस बात की खुशी है कि “लोगों की नजरों में” वह मुख्यमंत्री हैं. सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
24 October, 2019

बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे की असमय मौत के बाद, कई लोग उनकी सबसे बड़ी बेटी पंकजा, जो वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री हैं और जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने की अपनी आकांक्षा को कभी छुपाया भी नहीं, से मुंडे की विरासत को आगे बढ़ाने की अपेक्षा लगाए बैठे थे. 2014 के विधान सभा चुनावों से पहले, जब वह अभी अपने पिता की मौत के शोक से उबरी ही थीं तो पंकजा ने अहमदनगर जिले की भगवानगढ़ नामक जगह पर अपने समर्थकों को एकत्रित किया. सनद रहे कि भगवानगढ़, वंजारी समुदाय, जिससे मुंडे आते हैं, के आराध्य संत की आरामगाह भी है. उसी साल अक्टूबर में आयोजित विशाल रैली में, पंकजा की बगल में अमित शाह की मौजूदगी को उनके राजनीतिक अभिषेक के रूप में देखा गया.

लेकिन जब उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया तो वह अपनी नाराजगी छुपा नहीं सकीं. मई 2015 में, पुणे में पंकजा ने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि वह मुख्यमंत्री बनेंगी या बतौर मंत्री काम करती रहेंगी लेकिन उन्हें इस बात की खुशी है कि “लोगों की नजरों में” वह मुख्यमंत्री हैं. फडणवीस को उनकी बात पसंद नहीं आई और उन्होंने अपने जुलाई 2016 के अगले कैबिनेट फेरबदल में उनसे दो मंत्रालय (जल संरक्षण तथा रोजगार गारंटी मंत्रालय) छीन लिए.

इससे एक गंभीर संकट पैदा हो गया. मुंडे के समर्थकों ने उनके बीड जिले में फडणवीस का पुतला जलाया. पंकजा, जो उस वक्त जल संरक्षण के एक शीर्ष सम्मलेन के सिलसिले में सिंगापुर में थीं ने ट्वीट कर अपना विरोध दर्ज किया : “कल मैं वर्ल्ड वाटर लीडर समिट में हिस्सा लेने सिंगापुर पहुंच रही हूं. मुझे इस सम्मलेन में आमंत्रित किया गया था लेकिन अब मैं इसमें हिस्सा नहीं लूंगी क्योंकि अब यह मंत्रालय मेरे अधीन नहीं आता.” फडणवीस उस समय रूस में थे. उन्होंने तुरंत ट्वीट किया कि वह महाराष्ट्र सरकार की तरफ से सम्मेलन में जरूर हिस्सा लें. इस खुली डांट के बाद पंकजा ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए स्पष्ट किया कि वह निराश नहीं हैं और उन्होंने अपने समर्थकों से शांत बने रहने की अपील की.

पंकजा की समस्याओं का अभी अंत नहीं हुआ था. 1993 से ही गोपीनाथ मुंडे अपने समुदाय को भगवानगढ़ के मंदिर में अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए दशहरा के अवसर पर संबोधित करते आ रहे थे. इस परंपरा को पंकजा ने कायम रखा. लेकिन उत्सव से एक पखवाड़े पहले पंकजा और भगवानगढ़ के मंदिर के महंत के बीच तनातनी हो गई और समुदाय की वफादारियां बंट गईं. लिहाजा पंकजा के निर्विवाद नेता होने पर सवालिया निशान लग गए. पंकजा के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि भगवानगढ़ रैली को पटरी से उतारने के लिए मुख्यमंत्री खेमे के लोगों ने दोनों के बीच मनमुटाव पैदा किया.

कभी हार न मानने वाली पंकजा ने भगवानगढ़ के आसपास लगाई गई निषेध आज्ञा का उल्लंघन कर अपने समर्थकों को संबोधित किया. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, उन्होंने भीड़ से कहा, “उनके पास अपना इस्तीफा लिखा रखा है क्योंकि “पार्टी के अंदर-बाहर की शक्तियां” उन्हें “जान-बूझकर निशाना” बना रही हैं. मुझे अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंसाया जा रहा है, लेकिन मैं अपनी रक्षा खुद करूंगी,” उन्होंने दहाड़ लगाई. “मुझे किसी का डर नहीं है.”

हालांकि पंकजा ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि उनका यह शक्ति प्रदर्शन मुख्यमंत्री को चेतावनी थी. “पंकजाताई को बुरा लगा कि उनके मंत्रालय मुख्यमंत्री के करीबी कनिष्ठ नेताओं के पास चले गए थे,” मुख्यमंत्री के करीबी ने पुणे में बताया. “लेकिन वह कुछ कर भी नहीं सकती थीं. मुख्यमंत्री के पास शीर्ष पार्टी नेताओं का समर्थन था.”

मुख्यमंत्री के खिलाफ, पंकजा के आक्रमक तेवर बीजेपी-संघ के अधिकतर नेताओं को पसंद नहीं आए. उनके साथ सिर्फ एक ही नेता खड़े थे: वरिष्ठ ओबीसी नेता, एकनाथ खडसे, जिन्होंने कहा जनता पंकजा के साथ खड़ी है. हालांकि, फडणवीस द्वारा हाशिए पर धकेले जाने के बाद उनके समर्थन का कोई मतलब नहीं रह गया था.

(द कैरैवन के अक्टूबर 2019 अंक में प्रकाशित रिपोर्ट का अंश. पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें.)