कोरोना लॉकडाउन : संघ से जुड़े 736 एनजीओ को मिली सरकारी धन और रियायती राशन बांटने की पात्रता

15 जुलाई 2020
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ में नोवेल कोरोनवायरस महामारी तालाबंदी में राशन बांटा. आपदाओं में राहत कार्यों के लिए अपने स्वयंसेवकों को जुटाने का आरएसएस का इतिहास रहा है.
प्रमोद अधिकारी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ में नोवेल कोरोनवायरस महामारी तालाबंदी में राशन बांटा. आपदाओं में राहत कार्यों के लिए अपने स्वयंसेवकों को जुटाने का आरएसएस का इतिहास रहा है.
प्रमोद अधिकारी

13 मई तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कम से कम 736 गैर सरकारी संगठन नोवेल कोरोनावायरस महामारी के खिलाफ जारी लॉकडाउन में राहत कार्यों के लिए केंद्र सरकार द्वारा सूचीबद्ध संगठनों की सूची में आ गए थे. ये सारी संस्थाएं राष्ट्रीय सेवा भारती के तहत आती हैं, जो एक पंजीकृत ट्रस्ट है और, उसकी वेबसाइट के अनुसार शिक्षा, स्वास्थ्य और "आत्मनिर्भरता" के क्षेत्रों में काम करता है. सेवा भारती के एनजीओ उन 94662 एनजीओ में से एक हैं जो अप्रैल के पहले सप्ताह से देश भर के जिला प्रशासन के साथ “कोविड योद्धा” की तरह काम कर रहे हैं और गृह सचिव द्वारा गठित नौकरशाहों के एक समूह द्वारा जिनकी निगरानी की जा रही है. इस घोषणा के कारण, सेवा भारती के गैर सरकारी संगठन राज्य आपदा राहत कोष, या एसडीआरएफ- को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत राज्यों के लिए संकट के दौरान उपयोग करने के लिए और केंद्रीय सरकार निकाय, भारतीय खाद्य निगम से सब्सिडी वाले खाद्यान्न खरीदने के लिए धन के हकदार बन गए.

इस रिपोर्ट के पहले हिस्से में कारवां ने लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से आरएसएस के राहत कार्यों की जांच पड़ताल की है. जैसा कि पहली रिपोर्ट में दिखाया गया है कि तीन बार प्रतिबंधित संगठन संघ ने अपनी स्थापना के समय से ही हिंदू राष्ट्र के गठन के लिए प्रभाव और स्वीकार्यता पाने के लिए जारी महामारी में आपदा राहत कार्यों किए हैं. नतीजतन सेवा भारती के संगठनों के राहत कार्यों को करने के लिए सरकारी धन और संसाधनों का उपयोग महत्वपूर्ण है क्योंकि आरएसएस ने अपने आपदा राहत कार्यों के लिए कभी भी किसी भी सरकार से वित्तीय सहायता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है.

2014 तक आरएसबी के रोस्टर में 57000 सामाजिक और आर्थिक परियोजनाएं शामिल थीं, जिन्हें इसके डोमेन के तहत पंजीकृत कम से कम 928 गैर-सरकारी संगठन कर रहे थे. ये सभी संगठन आरएसबी की वेबसाइट पर सूचीबद्ध हैं. केंद्र सरकार की योजना निकाय नीति आयोग द्वारा संचालित एनजीओ-दर्पण नामक पोर्टल पर केंद्र सरकार के सूचीबद्ध एनजीओ की सूची बनाई गई है. आरएसबी की वेबसाइट का दावा है कि उसके सभी संगठन स्वैच्छिक और स्वतंत्र हैं और यह केवल वैचारिक रूप से आरएसएस से जुड़ा हुआ है. लेकिन आरएसबी की अपनी पंचवर्षीय रिपोर्ट जो अंतिम बार 2014 में प्रकाशित हुई, जिसमें आरएसएस के सह कार्यवाहक भैयाजी जोशी का एक कॉलम है. जोशी ने लिखा है कि ये सेवा भारती इकाइयां "स्वतंत्र हैं लेकिन आरएसएस द्वारा समर्थित और प्रेरित हैं." उन्होंने आगे कहा, "इन संगठनों के कार्यकर्ता स्थानीय आरएसएस पैटर्न के साथ जुड़े हुए हैं ... आरएसएस के बैनर के साथ कोई भी सेवा कार्यक्रम नहीं करता है, हालांकि ये कार्य स्वयंसेवकों द्वारा निर्देशित होते हैं." आरएसबी के संगठनात्मक पदानुक्रम के वरिष्ठ सदस्य संघ में भी उच्च पदों पर रहे हैं.

असम में संघ के बौद्धिक प्रमुख शंकर दास के अनुसार, संघ के पास "46 राष्ट्रीय मंच" हैं, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मजदूर शाखा, भारतीय मजदूर संघ और छात्र संगठन, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद शामिल हैं. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संघ के दायरे में आने वाले संगठनों की सटीक संख्या के लिए विद्वानों के बीच आम सहमति नहीं है. चूंकि संघ न तो एक पंजीकृत संगठन है और न ही यह करों का भुगतान करता है इसलिए इसने इसके वित्त और इसके सहयोगियों को जांच से बचने में मदद की है, जिन्हें सामूहिक रूप से संघ परिवार कहा जाता है. इसके बजाय संघ का मिथक अपनी स्वैच्छिक प्रकृति पर आधारित है. आरएसएस के स्वयं के साहित्य और दैनिक अभ्यास ने एक ऐसे संगठन की एक छवि बनाई है जो "आत्मनिर्भर" है और बाहरी स्रोतों से पैसा नहीं लेता. एक बार-बार दोहराया जाने वाला राग यह है कि आरएसएस अपने स्वंयसेवकों से "गुरुदक्षिणा" के रूप में धन इकट्ठा करता है.

मैंने लगभग दो दर्जन आरएसएस सदस्यों से बात की, जिनमें 11 राज्यों से आरएसबी से जुड़े लोग भी शामिल थे. संघ के वित्त पोषण के बारे में बोलते हुए, आरएसबी के सदस्यों ने दोहराया, "खुद से करते हैं या फिर कभी-कभी समाज के लोगों से मदद मिल जाती है.” इसमें सरकार की तरफ से किसी फंडिंग का कोई जिक्र नहीं था.

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

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