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9 मार्च 2021 को दिल्ली में प्रवर्तन निदेशालय के विशेष कार्य बल ने पंजाब एकता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और भोलेनाथ निर्वाचन क्षेत्र के विधायक सुखपाल सिंह खैरा के चंडीगढ़ निवास पर छापा मारा. ईडी ने उनके दामाद और सहयोगियों के आवासों पर भी छापे मारे. उसने परिवार के लोगों के मोबाइल फोन और अन्य डिजिटल उपकरणों को जब्त कर लिया.
खैरा पूर्व में आम आदमी पार्टी के विधायक और पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे हैं. छापे के वक्त पर गौर करें तो इसके पीछे के इरादों पर सवाल उठाना लाजमी हो जाता है. समन तो पहले जारी कर दिए गए थे लेकिन छापे ऐसे समय में मारे गए जब खैरा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के समर्थन में सार्वजनिक रूप से बोल रहे हैं. खैरा ने 26 जनवरी को कृषि कानूनों के खिलाफ आयोजित ट्रैक्टर रैली में मारे गए किसान नवरीत सिंह की मौत की जांच करने की बात उठाई है. इसके अतिरिक्त, खैरा यूएपीए के तहत आरोपों में फंसाए गए सिख युवाओं के मामलों पर खुल कर बोल रहे हैं.
प्रवर्तन निदेशालय ने 21 जनवरी को खैरा के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया था. छापे के दिन ईडी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की कि "जांच चल रही है" और "अप्रमाणित दस्तावेजों और डिजिटल उपकरणों का पता लगाया गया है." खैरा के अनुसार, शाम 7 बजे के आसपास पूरी हुई यह जांच पूर्व-निर्धारित और राजनीति से प्रेरित थी. खैरा ने मुझे बताया, "जांच पूरी होने से पहले या मेरा पक्ष सुने जाने से पहले ही इस तरह के गंभीर आरोप के साथ यह प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई."
नाम न छापने की शर्त पर ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे बताया कि खैरा और उनके परिवार पर सबसे पहले छापे एसटीएफ ने पंजाब में मारे हैं. इसके आलोक में उस संदर्भ की जांच करना उचित है जिसमें एसटीएफ बनाया गया था. 2019 में ईडी के एक हिस्से के रूप में एसटीएफ की कल्पना की गई थी ताकि पंजाब, जम्मू और कश्मीर और राजस्थान के तीन सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रग के अंतर्राष्ट्रीय कारोबार को ट्रैक किया जा सके. द ट्रिब्यून में प्रकाशित 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, एसटीएफ को "अवैध मादक पदार्थों के व्यापार से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की तेजी से जांच करने के लिए" बनाया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बल "अवैध मादक पदार्थों के व्यापार के पुराने और संभावित मामलों और ड्रग सिंडिकेटों पर नजर रखेगा और इस तरह के मामलों को धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत निपटाया जाएगा." ईडी के अधिकारियों ने मुझे बताया कि 2019 में अपनी स्थापना के बाद से एसटीएफ ने पंजाब में और कहीं छापे नहीं मारे और जांच नहीं की.
12 मार्च को ईडी ने समन जारी कर खैरा को 17 मार्च को पेश होने के लिए कहा. उसी दिन खैरा ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की जिसमें उनके खिलाफ मामले की जांच और ईडी के समन पर रोक लगाने की मांग की. उन्होंने दावा किया कि वह "विशुद्ध राजनीति प्रेरित उत्पीड़न का शिकार हैं." उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ समन जारी करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
24 मार्च को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष अपने जवाब में ईडी ने कहा कि उसने खैरा को "बेहिसाब नकदी" और "संपत्ति के विवरण" से संबंधित विसंगतियों का स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया था. 81 पृष्ठ के एक हलफनामे में ईडी ने कहा है, “श्री सुखपाल सिंह खैरा और उनके परिवार के सदस्यों के बैंक खातों और आयकर रिटर्न की भी जांच की गई और पाया गया कि 2008-09 की अवधि के लिए आयकर विभाग को घोषित विवरण के अनुसार 2019-20 तक सुखपाल सिंह खैरा की कुल आय लगभग 99,07,231 रुपए थी, हालांकि, उनके पांचों बैंक खातों में कुल 4.86 करोड़ रुपए जमा थे जिसमें से 0.843 करोड़ रुपए नकद जमा किए गए हैं. इसलिए श्री खैरा द्वारा अपने बैंक खातों में जमा रकम आयकर विभाग के समक्ष घोषित आय के अनुरूप नहीं है.” ईडी ने कहा कि "जांच के दौरान भारतीय मुद्रा और विदेशी मुद्रा में नकद लेनदेन वाले दस्तावेज" जब्त किए गए हैं. यह नोट किया गया कि "नकद लेन-देन ... लगभग 4.50 करोड़ रुपए का है" और "विदेशी मुद्रा में संदिग्ध लेन-देन 1.19 लाख डॉलर के करीब है."
खैरा ने कहा कि उनके सभी बैंक खाते वैध हैं. उन्होंने कहा कि नकद लेनदेन भी बेहिसाब नहीं था. "मेरे पास कोई अवैध संपत्ति या सामान नहीं है. मेरे पास मेरी कृषि भूमि है और चंडीगढ़ सेक्टर 5 में घर है." खैरा ने बताया कि दामाद इंद्रवीर सिंह जौहल पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय दरबारा सिंह के पोते हैं जो जालंधर का एक बहुत ही समृद्ध परिवार है. खैरा का कहना है, “उन्होंने और मेरे बेटे मेहताब सिंह खैरा ने साझेदारी में एक व्यवसाय शुरू किया और मेरा बेटा कानूनी सलाहकार बन कर हर महीने 1 लाख रुपए कमा रहा था." उन्होंने बताया कि व्यवसाय के हिस्से के रूप में उनके दामाद ने बेटे के खाते में 64 लाख रुपए जमा किए थे. खैरा ने कहा कि उन्होंने 2010 में क्षेत्रीय कृषि बैंक, 2016 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और 2019 में एचडीएफसी बैंक से अपनी कृषि भूमि और अपने चंडीगढ़ वाले घर पर कुल 3 करोड़ रुपए का बैंक ऋण लिया था. उन्होंने दावा किया कि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वह रिटर्न किस्तों का भुगतान कर सकें. "मैंने एक किस्त देने में देर कर दी तो मेरे दामाद ने मेरे खाते में 10-12 लाख रुपए भेजे थे. मैंने उसी दिन वह सारा का सारा पैसा क्षेत्रीय राजधानी बैंक को भुगतान कर दिया."
खैरा ने कहा कि ईडी की जांच टीम ने फरवरी 2016 में उनकी बेटी सिमर खैरा की शादी में हुए खर्च के ब्योरे वाली डायरियां भी ले ली. खैरा ने याचिका में कहा है, ''याचिकाकर्ता के घर से कोई हानिकारक सामग्री नहीं मिली. याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सेलफोन प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जबरन छीन लिए गए / जब्त कर लिए गए. दिल्ली में याचिकाकर्ता की शादीशुदा बेटी के निवास स्थान पर भी तलाशी ली गई. बेटी गर्भवती है.”
याचिका में कहा गया है कि जांचों और बरामदिगियों का ''ईडी का तौर-तरीका और रवैया असंगत, द्वेष और दुर्भावनापूर्ण था." याचिका में आगे कहा गया है, "यह निर्विवाद तथ्य दिखाता है कि यह सब याचिकाकर्ता के राजनीतिक विचारों के चलते उन्हें परेशान करने और धमकाने के लिए किया गया है और अगर मामले में इस तरह के एडवेंचरिज्म को बेलगाम होने दिया गया तो यह न केवल याचिकाकर्ता बल्कि उनके जैसों अन्य लोगों के मौलिक अधिकारों को खत्म करने के समान होगा."
खैरा के खिलाफ ईडी का मामला 2015 के ड्रग तस्करी रैकेट की पुलिस जांच पर आधारित है. द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, ईडी स्वतंत्र रूप से पीएमएलए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं कर सकता है. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में खैरा के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी थी. खैरा का कहना है कि ईडी मामले को फिर से नहीं खोल सकती. खैरा का कहना है, "मेरे या मेरे परिवार के खिलाफ उसी मामले में कार्यवाही शुरू करना, जिसमें मुझे स्टे मिला है, न्यायालय की अवमानना है."
9 मार्च की प्रेस विज्ञप्ति में जिस दिन ईडी ने छापे मारे, ईडी ने कहा कि छापे "फाजिल्का ड्रग्स तस्करी" मामले से जुड़े थे. इसमें कहा गया है कि "2015 में अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स तस्करों के एक गिरोह" से 1800 ग्राम हेरोइन जब्त की गई थी. इसमें कहा गया है, ''भारत-पाक सीमा से ड्रग्स की तस्करी होती थी … सुखपाल सिंह खैरा अंतरराष्ट्रीय तस्करों के गिरोह का सक्रिय समर्थन और मदद कर रहे थे और अपराध से फायदा उठा रहे थे.”
2015 में मामले में दर्ज की गई प्राथमिकी में खैरा का नाम नहीं था. 31 अक्टूबर 2017 को फाजिल्का की एक ट्रायल कोर्ट ने मामले के नौ आरोपियों को दोषी ठहराया. इनमें भोलेनाथ के निवासी गुरदेव सिंह भी थे.
उसी दिन पंजाब पुलिस के आवेदन पर फाजिल्का अदालत ने भी खैरा को ड्रग्स मामले में एक अतिरिक्त आरोपी के रूप में पेश होने के लिए समन जारी किया. पंजाब पुलिस ने तर्क दिया कि खैरा के संबंध गुरदेव से थे.
खैरा ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में फाजिल्का ट्रायल कोर्ट के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि मामले में फैसला सुनाए जाने के बाद उन्हें आरोपी नहीं बनाया जा सकता. उच्च न्यायालय ने उनकी चुनौती को खारिज कर दिया. इसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील की जिससे उन्हें कुछ राहत मिली. इसने दिसंबर 2017 में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी और बाद में इस मुद्दे को एक बड़ी बेंच को भेज दिया. तब से यह मामला लंबित है.
मार्च 2021 के हलफनामे में ईडी ने पंजाब पुलिस की जांच को दोहराया. ईडी ने हलफनामे में कहा है, “पंजाब पुलिस की जांच में पता चला कि श्री गुरदेव सिंह, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया है, श्री सुखपाल सिंह खैरा को उनके चुनाव अभियान के लिए धन और वाहन उपलब्ध कराते थे. गुरदेव हेरोइन की तस्करी करते थे. इससे यह साबित होता है कि श्री सुखपाल सिंह खैरा के चुनावों के लिए अपराध की कमाई का उपयोग किया गया था और बदले में श्री सुखपाल सिंह खैरा ने नशीली दवाओं की तस्करी में श्री गुरदेव सिंह (और अन्य) को सुरक्षा दी." हलफनामा आगे कहता है, "पंजाब पुलिस द्वारा जांच के दौरान ... अन्य आरोपियों ने खुलासा किया है कि गुरदेव सिंह ने उन्हें आश्वासन दिया था कि अगर हेरोइन की तस्करी के दौरान कोई समस्या आती है तो सुखपाल सिंह खैरा निश्चित रूप से उन्हें ऐसी स्थिति से बाहर निकालने में मदद करेंगे."
ईडी ने यह भी उल्लेख किया कि 27 फरवरी से 8 मार्च 2015 के बीच एफआईआर के सिलसिले में गुरदेव फरार चल रहा था. इस दौरान यूके में रहने वाली अपनी बहन चरणजीत कौर के जरिए खैरा और उनके निजी सुरक्षा अधिकारी जोगा सिंह गुरदेव के निजी सहायक मनीष के साथ "निरंतर संपर्क" में थे.
खैरा ने ड्रग तस्करी के रैकेट में किसी भी तरह से गुरदेव की मदद करने से इनकार किया है. उन्होंने बताया कि 2015 तक गुरदेव के खिलाफ ऐसा कोई मामला नहीं था. उन्होंने कहा कि 2015 में गिरफ्तारी के बाद से वह गुरदेव के संपर्क में नहीं थे और पंजाब विधानसभा चुनाव का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ''अगले चुनाव 2017 में हुए थे. चुनाव में जेल से गुरदेव मेरी मदद कैसे कर सकते हैं?”
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष दायर अपनी मार्च 2021 की याचिका में खैरा ने कहा कि गुरदेव केवल एक राजनीतिक परिचित और उनके निर्वाचन क्षेत्र में उनके समर्थक थे जिनके बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का उससे कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं है. "गुरदेव सिंह जैसे याचिकाकर्ता के कई हजार समर्थक और राजनीतिक परिचित हैं जिनके बारे में याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत स्तर पर कोई जानकारी नहीं हो सकती है."
याचिका में जोर दिया गया है कि खैरा "का नाम न तो एफआईआर में था और न ही किसी खुले या गुप्त अधिनियम के तहत दर्ज था." याचिका आगे कहती है, “जाहिरा तौर पर गुरदेव सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने और हिरासत में लिए जाने के बाद से ही तत्कालीन सरकार ने यह भ्रम फैलाने के लिए कि गुरदेव सिंह याचिकाकर्ता का करीबी है, जानबूझकर और बदनियती से भरे निंदा अभियान चलाए.” खैरा ने याचिका में आगे कहा कि उन्होंने यही समझा है कि उनके और उनके पीएसओ जोगा के साथ गुरदेव के "कुछ कॉल रिकॉर्ड जांच एजेंसी ने इकट्ठा किए थे," और "यह इस आधार पर किया गया था कि'' उनकी छवि को ''जानबूझकर खराब किया जा सके." उन्होंने कहा कि "एक जाना-माना व्यक्ति और क्षेत्र का एक लोकप्रिय नेता" होने के नाते उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में ऐसे कई हजारों परिचितों के साथ बातचीत की थी और इसलिए यह नहीं माना जा सकता था कि सिर्फ इसलिए कि हमारे बीच फोन में बातचीत हुई इसलिए गुरदेव सिंह के साथ मिलीभगत रही होगी."
ईडी के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा ने मेरे सवालों के जवाब नहीं दिए. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में खैरा के मामले पर अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होनी है. अपनी याचिका में खैरा ने आगे कहा कि उन्हें यकीन है कि वह "केंद्र सरकार के निशाने में आ गए" हैं. उन्होंने कहा कि वह किसानों के चल रहे विरोध प्रदर्शनों में "सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं" और कृषि कानूनों की निंदा करने में "बहुत मुखर" हैं. उन्होंने कहा कि वह "निडर होकर मानवाधिकारों के उल्लंघन की विभिन्न घटनाओं को सामने ला रहे हैं जिनमें वर्दीधारी पुलिस अधिकारियों द्वारा उन किसानों के साथ क्रूरतापूर्वक मारपीट के मामले भी हैं जो शांतिपूर्वक तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं." नवरीत की मौत का जिक्र करते हुए खैरा ने कहा कि उन्होंने "तत्कालीन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामने आक्रामक तरीके से न्यायिक जांच की मांग को उठाया है."
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