मिशनरी ऑफ जीसस मंडली की एक नन अल्फी पल्सेरिल ने 6 अप्रैल 2018 को अपने वरिष्ठ-जनरल को लिखा, “सिस्टर, अगर आप अन्याय के खिलाफ मजबूत नहीं हो सकती हैं तो बहनों को सजा देने को लेकर आप इतनी मजबूत कैसे हैं, वे बहनें जो सच और न्याय के साथ खड़ी हैं.” रोमन कैथलिक चर्च में वरिष्ठ-जनरल महिलाओं के धार्मिक पदक्रम में सबसे ऊपर होती हैं. जालंधर सूबे के तहत आने वाली मंडली मिशनरी ऑफ जीजस में इस पद पर रेजिना कदामोत्तु हैं. अल्फी और कदामोत्तु के बीच 3 और चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ लेकिन इसके बाद दोनों की बातचीत ने अप्रत्याशित मोड़ ले लिया. 20 जून को कदामोत्तु ने लिखा, “मैंने सूबे द्वारा शिकायत की एक कॉपी प्राप्त की है जिसे केरल प्रशासन को दिया गया है, इसमें आपके ऊपर षडयंत्र के आरोप लगाए गए हैं जिसमें कहा गया है कि आप अपने ही सरंक्षक और जालंधर सूबे के बिशप मुलक्कल को मारना चाहती हैं.”
उस दिन मंडली की चार और ननों को ऐसा की एक पत्र मिला. इनमें अनुपमा केलामंगलाथुवेलियिल, नीना रोज, जोसेफिन विलोनिक्कल और एनसिट्टा उरुम्बिल शामिल थीं. एक साल से अधिक से ये 5 ननें फैंको मुलक्कल के खिलाफ एक कठिन लड़ाई लड़ रही हैं. मुलक्कल जालंधर सूबे के बिशप हैं. पांचों नन मिशनरी ऑफ जीजस की एक नन के समर्थन में ये लड़ाई लड़ रही हैं. इस नन ने मुलक्कल पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं. अल्फी ने कदामोत्तु पर ननों द्वारा की गई शिकायत को अनसुना कर देने का आरोप लगाया. अल्फी ने लिखा, “सिस्टर्स आपकी चुप्पी हमेशा पवित्र नहीं होती है. ये हानिकारक है क्योंकि यह कई लोगों को नुकसान पहुंचा रही है.” द कारवां के पास इससे जुड़े दस्तावेज हैं. इनमें पता लगा है कि मुलक्कल और जालंधर सूबे में उनके करीबीयों ने यहां एक संस्कृति थोपी है. मिशनरी ऑफ जीजस के सदस्यों पर चुप्पी और आज्ञा पालन की ये संस्कृति थोपी गई है. द कारवां के पास मौजूद दस्तावेजों में पीड़ित नन, पांच और ननों और कदामोत्तु द्वारा भेजी गई असंख्य चिट्ठियां शामिल हैं.
23 जनवरी को मैंने केरल के कोट्टायम जिले के कुराविलानगढ़ शहर तक का सफर किया और सैंट फ्रांसिस मिशन होम पहुंची. ये मिशनरी ऑफ जीजस का एक कॉन्वेंट है. यहीं ये 6 ननें रह रही हैं. पिछले साल जून से कुराविलानगढ़ की पहचान नन द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से होने लगी है. उसी महीने 43 साल की पीड़ित नन ने मुलक्कल के खिलाफ 13 बार अलग-अलग यौन हिंसा करने का मामला दर्ज करवाया था. मुलक्कल के ऊपर 2014 से दो सालों के दौरान इस यौन हिंसा को अंजाम देने का आरोप है.
पीड़ित ने पुलिस के पास जाने का फैसला अपने महीनों से किए जा रहे उन प्रयासों के बाद किया जिसके तहत उसने धार्मिक नेताओं के पास मामले को उठाने की कोशिश की थी. इसमें वे चिट्ठियां भी शामिल हैं जो जॉर्ज एलेनचेरी को भेजी गई थीं. वे सिरो-मालाबार चर्च के अहम आर्कबिशप हैं. आस्था के सिद्धांत की मंडली (इसे पवित्र कार्यालय के तौर भी जाना जाता है) के अधिकारी लुई लाडारिया फेरर को भी चिट्ठी भेजी गई और कैथोलिक चर्च के वर्तमान प्रमुख पोप फ्रांसिस को भी चिट्ठी भेजी गई. 14 मई 2018 को पीड़िता ने पोप को लिखा, “एक धार्मिक नन के तौर पर मैं अपनी पीड़ा को आपके सामने रखना चाहूंगी क्योंकि बिशप फ्रैंको मुलक्कल ने मेरे साथ लगातार यौन हिंसा और उत्पीड़न किया है.” पीड़िता ने लिखा कि मुलक्कल ने पहली बार उनका रेप 5 मई 2014 को तब किया था जब वे कुराविलानगढ़ कॉन्वेंट के दौरे पर आए थे. पीड़िता ने लिखा, “मैं डरी और सहमी हुई थी और खतरनाक डर की वजह से मैं इस दर्द को किसी से साझा नहीं कर पाई. लेकिन पूर्व बिशप ने ऐसा करना बाद में भी जारी रखा. उसके बाद पीड़िता ने सितंबर 2016 में बिशप को न कहने की हिम्मत जुटाई.”
पीड़िता ने चिट्ठी में ये विस्तार से बताया कि बिशप को न कहने के बाद मिशनरी ऑफ जीजस में उसे किस तरह की प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. पीड़िता ने लिखा, “इसके बाद उन्होंने सुपिरियर जनरल और काउंसलर के सहारे मुझपर आरोप लगाने और प्रताड़ित करने का काम किया. फरवरी 2017 को उन्होंने मुझे बिना कारण बताए केरल कॉन्वेंट के प्रभारी के पद से हटा दिया. इसके बाद मैं जहां रहती हूं वहां की समुदाय के वरिष्ठ का पद मुझसे मई 2017 में छीन लिया गया. इससे मेरे भीतर मानसिक तनाव पैदा हुआ औऱ मैंने धार्मिक जीवन त्यागने तक का सोच लिया.”
सितंबर 2018 में भारत में एपोस्टोलिक धर्म दूत (पोप के प्रतिनिधि) जियामबतिस्ता डिक्वात्रो को एक चिट्ठी लिखी गई. पीड़िता ने इसमें मुलक्कल के खिलाफ ननों और उनके परिवार वालों के खिलाफ सिलसिलेवार फर्जी पुलिस शिकायत करने के आरोप लगाए. ये काम जालंधर सूबे के पब्लिक-रिलेशन अधिकारी पीटर कावुमपुरम को मोहरा बनाकर कराया गया था. पीड़िता ने लिखा कि नवंबर 2017 को कावुमपुरम ने पीड़िता और अनुपमा के खिलाफ जालंधर में शिकायत दर्ज करवाई. इसमें आरोप लगाया गया कि ननें बिशप आत्महत्या की धमकी दे रही थीं. 19 जून 2018 को कावुमपुरम ने एक और शिकायत दर्ज कराई जिसमें उसने पीड़िता के भाई द्वारा मुलक्कल को हत्या की धमकी दिए जाने के आरोप लगाए. पीड़िता ने लिखा कि 4 दिनों बाद कावुमपुरम ने तीसरी शिकायत दर्ज कराई. इस बार कोट्टायम के पुलिस अधिक्षक के पास शिकायत दर्ज कराई गई. शिकायत में ननों के परिवार के सदस्यों पर आरोप लगाया गया कि वे मुलक्कल को हत्या की धमकी दे रहे हैं.
कावुमपुरम ने पुलिस में शिकायतें दर्ज करवाने की पुष्टी की. उसने कहा कि पुलिस ने सिर्फ दूसरे और तीसरे मामले में एफआईआर दर्ज की है और दोनों मामलों में जांच जारी है. उसने पीड़ितो के उन आरोपों का खंडन किया, जिसमें ननों और उनके परिवार वालों को झूठमूठ में फंसाए जाने की बात कही गई है. कावुमपुरम के मुताबिक पीड़िता के भाई के खिलाफ दूसरा मामला तब दर्ज करवाया गया जब अप्रैल 2018 में मुलक्कल को बिना नाम वाली धमकी की चिट्ठियां मिलीं. उन्होंने सिजोय नाम के एक व्यक्ति को पीड़िता का भाई बताया. उन्होंने कहा कि सिजोय ने लिखित में दिया कि धमकी भरी चिट्ठी पीड़िता के भाई ने लिखी थी. कावुमपुरम ने मुझसे कहा, “इन सबके बाद जालंधर सूबे की सभा इकट्ठी हुई. सभा ने तय किया कि किसी हाल में एक शिकायत दर्ज कराई जानी चाहिए. हम इन सबके बाद चुप नहीं रह सके. हमें दुनिया के समाने मूर्ख नहीं बनना चाहिए.” लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने जुलाई 2018 में बताया कि सिजोय ने पुलिस से कहा कि उसे “चिट्ठी लिखने के लिए मजबूर किया गया था.”
पब्लिक रिलेशन ऑफिसर पीड़िता के बारे में शांति भरे तिस्कार से बात कर रहा था. कावुमपुरम ने कहा, “उन्होंने ने (पीड़िता ने) अपनी पूरी जिंदगी झूठ बोलकर बिताई है. उन्होंने कहा कि एक अपराध जो नहीं हुआ है वह हुआ है और 2018 में ये झूठ बोला कि 2014 में रेप हुआ है. पूरी दुनिया ये सच जानती है. अगर आप जानना चाहते हैं कि क्यों तो जब उन्हें आदेश दिया जाता है तो नहीं जाती हैं. एक धार्मिक नन होने की वजह से आज्ञाकारिता सबसे अहम है.” उसने पीड़िता के समर्थन में नन के प्रदर्शन के बारे में भी उसी लहजे में बात की. उसने कहा, “वे जो चाहें करें... वे चर्च की छवि धूमिल करने के लिए ये बेशर्मों वाली हरकत कर रही हैं.”
तीसरी शिकायत के दो दिनों बाद 25 जून 2018 को पीड़िता ने डिक्वात्रो को एक ईमेल भेजा. इसमें उन्हें इसके पहले भेजी गई एक चिट्ठी का जिक्र था. इस चिट्ठी को भागलपुर सूबे के बिशप कुरियन वालियाकान्डाथिल द्वारा उसी साल जनवरी में भेजा गया था. पीड़िता ने लिखा कि इसके पहले की चिट्ठी में “यौन उत्पीड़न, मानसिक उत्पीड़न और जालंधर के बिशप फ्रैंको मुलक्कल द्वारा पुलिस शिकायत” का उल्लेख किया गया था. अपने जून के ईमेल में पीड़िता ने लिखा, “मैं इंतजार कर रही थी कि कैथलिक चर्च से मुझे न्याय मिलेगा. लेकिन चीजें बदतर होती जा रही हैं. यहां तक कि मेरे परिवार को हत्या की धमकी मिल रही है. वे अच्छे और ईश्वर से डरने वाले कैथलिक लोग हैं. ऐसे में मुझे इन खतरनाक कृत्यों वाले बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ कानूनी रास्ता अपनाना पड़ रहा है.” तीन दिनों बाद पीड़िता ने कुरविलानगढ़ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करा दी.
हालांकि, पांच ननों द्वारा पीड़िता को मिला समर्थन पुलिस शिकायत दर्ज होने के बाद ही सबके सामने आया, सूबे के नेतृत्व के खिलाफ उनका संघर्ष काफी पहले शुरू हो गया था. रेजिना और ननों के बीच पत्रों का आदान-प्रदान दिखाता है कि मुलक्कल के खिलाफ बोलने वाली ननों को मिशनरी ऑफ जीजस ने कैसे प्रताड़ित किया. रेजिना ने मई 2018 में अल्फी को लिखा, “मैं महामहिम के खिलाफ कोई कदम कैसे उठा सकती हूं. हम सब उनके अधिकार के भीतर हैं और मंडली का अस्तित्व उनके समर्थन के बिना संभव नहीं है. निजी समस्याओं को निजी स्तर पर बातचीत और सुलह से सुलझाया जाना चाहिए.” मिशनरी ऑफ जीजस के सदस्यों के बीच जिन चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ, उनमें मुलक्कल को लेकर आज्ञाकारिता की चाह झलकती है और इसकी खिलाफत करने वालों के खिलाफ दण्डनीय कदम उठाए जाने का भी एक ढर्रा है.
सेंट फ्रांसिस मिशन होम में मैं 5 ननों के साथ डाइंग रूम में बैठी. इस दौरान उन्होंने अभी तक की अपनी लड़ाई के बारे में बात की. ननें पहली बार सितंबर 2018 में राष्ट्र की निगाहों में आईं. ये उनके द्वारा केरल हाई कोर्ट के पास किए गए एक अप्रत्याशित प्रदर्शन की वजह से हुआ. इसमें वे मुलक्कल के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही थीं. प्रदर्शन के वक्त पीड़िता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के दो महीने हो गए थे और पुलिस ने अभी तक मुलक्कल को गिरफ्तार भी नहीं किया था. वह अभी भी जालंधर सूबे के बिशप के तौर पर सेवा दे रहे थे. 21 सितंबर की रात केरल पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इसके एक दिन पहले उनके द्वारा पादरी संबंधित सभी जिम्मेदारियों से “अस्थायी रूप से हटाए” जाने की मांग को कैथलिक चर्च ने मान लिया था. पीड़िता द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद मुलक्कल की गिरफ्तारी में 85 दिन लग गए. 25 दिन कैद में बिताने के बाद इस पूर्व बिशप को बेल पर रिहा कर दिया गया.
अनुपमा केलामंगलाथुवेलियिल ने पूछा, “किसने इसे उस मोड़ पर लाया कि हमें प्रदर्शन करना पड़ा.” उन्होंने मंडली के नेतृत्व पर दोष मढ़ा. “अगर उन्होंने हमारी शिकायत आगे बढ़ाई होती तो थोड़ा न्याय तो हुआ ही होता. जब ऐसा नहीं हुआ, हमने इसकी आलोचना की.” सार्वजनिक प्रदर्शन होने से पहले के महीनों में अनुपमा और कदामोत्तु के बीच पत्राचार हुआ था, जिसमें साफ झलकता है कि जो भी मुलक्कल को चुनौती देने की कोशिश करता था उसे मंडली धीरे से और बेहद सधे तरीके से किनारे कर देती थी. 20 मई 2017 को अनुपमा को पंजाब के गुरदासपुर शहर की मंडली के सर्वन कॉन्वेंट का वरिष्ठ बनाया गया था. वरिष्ठ के पद पर बैठा व्यक्ति कॉन्वेंट का कार्यकारी प्रमुख होता है. उस साल जुलाई में सर्वन पहुंचने पर अनुपमा को पता चला कि तबादले की लिस्ट में एक बदलाव हुआ है. वरिष्ठ के तौर पर उसकी नियुक्ति को रद्द कर दिया गया है और उल्टे उन्हें कोई जिम्मेदारी ही नहीं दी गई है. 14 नवंबर 2017 को अनुपमा ने कदामोत्तु को लिखा कि इसकी वजह से उन्हें महसूस होता है कि मंडली ने उन्हें लेकर बेरुखी दिखाई है.
उसी महीने में और पहले अनुपमा ने चिट्ठी में लिखा कि उन्होंने सर्वन कॉन्वेंट की एक और नन एनी रोज को बता दिया है वे मंडली में अलग-थलग महसूस करती हैं. एनी ने उन्हें मुलक्कल से मिलने को कहा. अनुपमा इसलिए तैयार हो गईं क्योंकि रोज इसके लिए उनसे “आग्रह और जबरदस्ती” कर रही थीं और 8 नवंबर को वह मुलक्कल से मिलने गईं. सर्वन से जालंधर तक के पूरे सफर में पीड़ित की शिकायतों का समाधान करने के बजाए रोज लगातार उनकी आलोचना करती रहीं. अनुपमा लिखती हैं, “मुझे लगा कि उन्हें मेरी परवाह नहीं है.”
जालंधर में मुलक्कल ने अनुपमा को उनकी जिम्मेदारियों से बरी कर दिए जाने से जुड़े सवालों का जवाब नहीं दिया बल्कि उनके द्वारा पीड़िता को दिए जा रहे समर्थन पर सवाल खड़ा कर दिया. अनुपमा ने कदामोत्तु को चिट्ठी में लिखा, “ये मेरे सवालों का जवाब नहीं था. उल्टे मुझे ऐसा महसूस हुआ कि वे मुझे जवाब दे रहे हैं कि मैं (पीड़िता) का समर्थन कर रही हूं और तबादले से जुड़े बदलावों का यही कारण है.” उन्होंने लिखा कि इसके बाद मुलक्कल ने पीड़िता पर आरोप लगाए और अनुपमा पहले से जानती थीं कि ये आरोप गलत हैं. मुलक्कल ने पीड़िता पर कई आरोप लगाए. इन सब आरोपों को अनुपमा ने चिट्ठी में लिखा और उन्हें खारिज कर दिया. इस बीच मुलक्कल वरिष्ठ के तौर पर अनुपमा को फिर से नियुक्त करने पर राजी हो गए लेकिन शर्त मुलक्कल की बात मानना था. अनुपमा ने लिखा, “अपने धर्मिक पाठ में मैंने सीखा है कि अधिकार किसी को भगवान की कृपा से मिलता है. अब तक मैं इससे अंजान थी कि अपने से ऊपर के लोगों को खुश करके अधिकार हासिल किया जा सकता है.”
मुलक्कल ने अनुपमा से पीड़िता के समर्थन में लिखी गई उनकी पहले की चिट्ठियों के लिए माफीनामा लिखने को कहा. लेकिन मुलक्कल को उस माफीनामे से संतुष्टि नहीं हुई जो अनुपमा ने लिखी थी. अगले दिन उन्होंने अनुपमा के नाम से एक नया माफीनामा जारी किया जिसमें लिखा था, “पहले मुझे सच का पता नहीं था, अब मुझे और तथ्यों का पता चला है, मैंने जो किया है उसके लिए मुझे सचमुच माफ किया जाए.” हालांकि,मुलक्कल ने इस बात से इंकार किया कि उन्होंने अनुपमा को माफीनामा लिखने को मजबूर किया. उन्होंने मुझसे कहा, “ये झूठ है.”
14 नवंबर को लिखी गई चिट्ठी में अनुपमा ने माफीनामे को रद्द करने की मांग की. इसमें लिखा था कि पीड़िता पर झूठे आरोप लगाना “पूरी तरह से उनकी चेतना के खिलाफ” है. चिट्ठी के अंत में उन्होंने लिखा, “मैं डरी हुई हूं. ये मेरे जीवन के खतरे में होने जैसा है क्योंकि उन्होंने मेरे मुंह पर कहा था कि वे किसी हाल में मुझे मंडली से निकलवा कर रहेंगे. ऐसी स्थिति में मैं आपको ये चिट्ठी राह दिखाने और समर्थन की उम्मीद में लिख रही हूं.”
कदामोत्तु ने अनुपमा की कोई मदद नहीं की. कदामोत्तु ने 27 नवंबर को लिखी गई एक चिट्ठी में जवाब दिया, “मैं 14 नवंबर 2017 की तारीख के 11 पन्नों वाली चिट्ठी को पाकर बेहद आश्चर्यचकित थी क्योंकि ये आपकी माफीनामे से जुड़ी पिछली चिट्ठी के ठीक उल्ट थी. इस चिट्ठी में आपने महामहिम फ्रैंको मुलक्कल की छवि को धूमिल करने वाले कई आरोप लगाए हैं.” कदामोत्तु ने अनुपमा को जनरल काउंसिल को संबोधित करने के लिए 30 नवंबर को जालंधर बुलाया. ये जालंधर सूबे के नेतृत्व से जुड़ा था. उन्होंने लिखा, “अगर आप इस दिन यहां नहीं पहुंचतीं तो आपके ऊपर अनादर और मानहानि के लिए उचति धर्मवैधानिक जुर्माना लगाया जाएगा.”
12 दिसंबर को अनुपमा जनरल काउंसिल के सामने पेश हुई. कदामोत्तु ने काउंसिल के फैसले से जुड़ी एक और चिट्ठी अनुपमा को भेजी. बाकी बातों के बीच कदामोत्तु ने अनुपमा को मुलक्कल से मिलने का निर्देश दिया और “माफी मांगने को कहा”. ये माफी 14 नवंबर वाली चिट्ठी के लिए थी. उन्होंने अनुपमा को कुराविलानगढ़ कॉन्वेंट वापस लौटने से भी मना कर दिया. उन्होंने कहा कि हालांकि, अनुपमा को “वरिष्ठता से जुड़े उनके काम से मुक्त” कर दिया गया है, वे “अभी भी सर्वन समुदाय की सदस्य” हैं. ट्रांसफर ऑर्डर की अवहेलना करते हुए पीड़िता का समर्थन करने के लिए. अनुपमा सैंट फ्रांसिस मिशन लौट गई
बाकी की 4 ननों के साथ भी मंडली का बर्ताव ऐसा ही रहा. उनके भी तबादले किए गए, सजा दी गई और जालंधर समन किया गया. जुलाई 2017 को मंडली ने नीना रोज का कुराविलानगढ़ कॉन्वेंट से तबादले का आदेश जारी किया. नीना ने इलाज के लिए कॉन्वेंट में ही रहने की इजाजत मांगी. इसके जवाब में कदामोत्तु ने लिखा कि नीना को “जब तक उनका इलाज चल रहा है तब तक सभी जिम्मेदारियों और अध्ययन से मुक्त किया जाता” है. इस समय नीना अपने मास्टर्स की परीक्षा की तैयारी कर रही थीं और असल में मंडली ने उन्हें ये परीक्षा देने से रोक दिया था. अनुपमा की चिट्ठी इस ओर इशारा करती है कि ये भी इस वजह से हुआ था क्योंकि नीना ने बिशप के खिलाफ आवाज उठाई थी. उन्होंने लिखा कि पूर्व बिशप ने उनसे कहा था, “मैं नीना रोज को परीक्षा नहीं देने दूंगा और तुम दोनों को ही वरिष्ठता से पीड़िता को दिए गए तुम्हारे समर्थन की वजह से हटाया गया है.”
अनुपमा ने अपनी चिट्ठी में जिस तरह से घटनाक्रम का जिक्र किया था मुलक्कल ने उसे खारिज किया है. जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने दो ननों को मंडली से निकाल फेंकने की धमकी दी थी तो जबाव में उन्होंने कहा, “नहीं, नहीं, कभी नहीं, एक को भी नहीं.”
जोसेफिन विलोनिक्कल और अल्फी पल्सेरिल दोनों ने ही उन्हें दिए गए कॉन्वेंट को छोड़ दिया. पहली का कॉन्वेंट झारखंड और दूसरी का बिहार में था. दोनों पीड़िता के समर्थन में कुराविलानगढ़ चले गए. दोनों को कुराविलानगढ़ छोड़ने का निर्देश दिया गया. एंसिटा उरुम्बिल का भी कुराविलानगढ़ कॉन्वेंट से तबादला कर दिया गया और उन्हें केरल के कन्नूर जिले पेरियारम कॉन्वेंट की जिम्मेदारी संभालने का आदेश दिया गया. सभी 5 ननों ने आदेश को चुनौती दे दी. 20 जून को उन सबको एक-एक चिट्ठी मिली, जिनमें उन्हें बताया गया था कि उनके ऊपर मुलक्कल की हत्या के षड़यंत्र का आरोप लगा है. चिट्ठी में लिखा था, “मंडली के लिए ऐसी स्थिति का सामना करना शर्मनाक है इसलिए मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि तत्काल प्रभाव से उन समुदायों से जाकर जुड़ जाएं जो तुम्हें दिए गए हैं.”
मिशनरी ऑफ जीजस के सदस्यों के बीच हुए पत्राचार से एक बात साफ थी. वह ये कि मंडली के सदस्यों को किनारे लगाए जाने का तरीका सिर्फ पीड़िता के मामले में ही नहीं था, बल्कि जो नन मुलक्कल की सत्ता पर सवाल खड़े करती थी उसके खिलाफ यही किया जाता था. मुलक्कल को अक्टूबर 2013 में बिशप नियुक्त किया गया था. इसके 4 महीने पहले कदामोत्तु को मंडली का वरिष्ठ-जनरल बनाया गया था. अप्रैल 2018 को कदामोत्तु को लिखी गई एक चिट्ठी में जोसफिन ने बार-बार दी जाने वाली एक ही सजा की प्रकृति की ओर ध्यान खींचा. उन्होंने लिखा कि तीन सालों में मिशनरी ऑफ जीजस ने “16-17” ननों को खो दिया क्योंकि उनकी वरिष्ठ-जनरल ने उनका “तबादला करने का फैसला” किया था.
जोसफिन ने व्यंगात्मक लहजे में लिखे गए अपने 10 पन्नों के खत में कहा, “आपको उन सबको दबा देना चाहिए जो आपकी राजनीति को खतरा हों. अगर आप उनको शुरू से ही नहीं दबा कर रखते तो वे सच में आप सबके लिए खतरे में तब्दील हो जाएंगे जिसकी आंच बिशप फ्रैंको तक पहुंचेगी. अब मुझे उम्मीद है कि कोई एमजे आपके या बिशप फ्रैंको के खिलाफ नहीं बोल पाएंगे.” चिट्ठी में जोसफिन ने उन 12 ननों के नामों का जिक्र किया, जिन्हें उनकी वरिष्ठ-जनरल की वजह से मंडली छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था. वहीं, तीन ऐसी ननों का नाम भी शामिल था जिन्हें बावजूद गलत व्यवहार के आरोपों के मंडली के नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है. उन्होंने लिखा, “जब कभी सिस्टर्स आपसे आपकी नीतियों पर सवाल करने की हिमाकत करती हैं तो आप उन्हें बहला कर, तबादला कर या लॉलीपॉप पकड़ा के चुप करा देती हैं. बिशप फ्रैंको उन पर सवाल खड़ा करने वाले जालंधर सूबे के पादरियों की आवाज दबाने के लिए जो चाल चल रहे हैं, वही चाल आप हम जैसे उन लोगों के खिलाफ चल रही हैं जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती हैं. ऐसे लालच भरे/बचकाना फैसले हमारी मंडली को बर्बाद कर सकते हैं.”
ये आरोप कि कदामोत्तु और मुलक्कल मंडली को बर्बाद कर रहे हैं अलग-अलग चिट्ठियों में बार-बार सामने आए. इनमें जोसफिन और पीड़िता द्वारा लिखी गई चिट्ठियों में ये प्रमुखता से सामने आए. दोनों ने आरोप लगाए कि मुलक्कल मंडली को कुछ हद तक इसके इतिहास की वजह से भी बर्बाद करना चाहते हैं. मिशनरी ऑफ जीजस की स्थापना सिंफोरियन कीपरथ ने की थी. वे जालंधर सूबे के संस्थापक और पहले बिशप थे जिन्होंने 2007 तक अपनी सेवाएं दीं और जब कीपरथ कॉन्वेंट के बिशप थे तो पीड़िता वहां वरिष्ठ-जनरल थी. 2013 में उनकी जगह अनिल कुटो ने ले ली, फिर मुलक्कल जालंधर सूबे के तीसरे बिशप बने.
जोसफिन और पीड़िता की चिट्ठियों ने इस ओर इशारा किया कि मुलक्कल, कीपरत को लेकर दुश्मनी का भाव रखते थे. जुलाई 2017 को मेजर आर्कबिशप जॉर्ज एलनचेरी को एक चिट्ठी में पीड़िता ने लिखा कि मुलक्कल ने एक बार ननों को कहा था, “मैं तुम्हारी मंडली को वैसे ही दफना दूंगा जैसे मैंने तुम्हारे संस्थापक बिशप को दफनाया था.” पीड़िता ने लिखा कि ऐसा करने के लिए मुलक्कल उन ननों को फायदा पहुंचाने से लेकर आजादी तक देते जो उनका कहा करने को तैयार होतीं और जो ऐसा नहीं करतीं उन्हें सजा दी जाती. उन्होंने लिखा, “अगर कोई सिस्टर इसका विरोध करती है तो महामहिम बदला लेने के लिए उसका तबादला कर देते हैं. जो उनकी मर्जी के हिसाब से काम करती हैं वे अपनी आजादी के हिसाब से कुछ भी कर सकती हैं.”
जैसा अनुपमा की चिट्ठी के मामले में हुआ, मुलक्कल ने जोसफिन की चिट्ठी में लगाए गए आरोपों को भी खारिज कर दिया. उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि वे मंडली को बर्बाद करना चाहते हैं. कीपरथ के साथ उन के संबंध के बारे में मुलक्कल ने कहा, “वे मेरे बिशप थे और मेरे पिता की तरह थे.” उन्होंने कहा कि वो मिशनरी ऑफ जीजस के काम काज में दखल नहीं देते. उन्होंने कहा, “बिशप को छुट्टी, प्रमोशन, भर्ती, फॉर्मेशन, तबादले, आगे की पढ़ाई, पैसे के लेन-देन से जुड़े किसी मामले में दस्तखत नहीं करना होता. इनमें से किसी मामले में बिशप के दस्तखत नहीं चाहिए होते हैं. ये जनरल चुनी हुई काउंसिल के साथ मिलकर तय करता है.” उन्होंने कहा कि मंडली के मामले में बिशप की जिम्मेदारियां इस हद तक सीमित हैं कि उसे देखना होता है कि “सब ठीक से चल रहा है, बस.” कदामोत्तु ने कई कॉल्स और मैसेजों का जवाब नहीं दिया. मैंने उन्हें मेल और व्हाट्सएप पर सवालों की एक लिस्ट भेजी लेकिन इस स्टोरी के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं आया.
पीड़िता ने मेडर आर्कबिशप जॉर्ज एलनचेरी को लिखा, “कोई सिस्टर विरोध करती है तो बदला लेने के लिए महामहिम उनका तबादला कर देते है. जो ननें बिशप की मर्जी के अनुसार चलने को तैयार हैं उन्हें बिशप उनकी आजादी के मुताबिक जो चाहे वह करने की इजाजत देते हैं.”
पीड़िता ने भी लिखा था कि 15 सदस्यों ने मंडली को इसलिए छोड़ा क्योंकि मुलक्कल के बिशप बनने के बाद उन्हें “नैतिक और आध्यात्मिक संघर्ष” का सामना करना पड़ रहा था. उन्होंने लिखा, “हमारी मंडली को बर्बाद करने के लिए महामहिम गंदा खेल खेल रहे हैं. हालांकि, हमने कभी इसे ऊपर के लोगों के साथ साझा करने का नहीं सोचा था, लेकिन वर्तमान में महामहिम ने जैसे हालात पैदा कर दिए हैं उससे हमारी सिस्टर्स की जान को खतरा है. वह उनकी गलत संगत में पड़ गई हैं.”
अपनी चिट्ठी में जोसफिन ने लिखा कि पीड़िता कीपरथ की करीबी थी और आरोप लगाए कि कदामोत्तु द्वारा उठाए गए ज्यादातर कदम “जलनशील स्वभाव से प्रेरित” थे. जोसफिन ने ऐसी कई घटनाओं का जिक्र किया जो उनके हिसाब से जलन होने की बात साफ करते थे. इनमें पीड़िता को कीपरथ के आखिरी दिनों में उनके साथ समय नहीं बिताने देना और पीड़िता के लिए “प्रेम दिखाने वाली जूनियर सिस्टर्स” को चुनकर उनपर हमला करना जैसी बातें शामिल थीं. जोसफिन ने लिखा, “जैसा कि बिशप फ्रैंको बिशप सिफोरियन का नाम मिटा देना चाहते थे वैसे ही निजी दुश्मनी की वजह से आप भी (पीड़िता का) नाम मिटा देना चाहती थीं.”
जून 2018 में पुलिस शिकायत दर्ज कराने छह दिनों पहले पीड़िता ने कदामोत्तु को चिट्ठी लिखी जिसमें उनपर निजता के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया. उन्होंने लिखा कि एंटनी मैडेसरी के पास पीड़िता के बारे में की गई उस शिकायत की एक कॉपी है जो कदामोत्तु को भेजी गई थी. एंटनी मैडेसरी फ्रांसिसियन मिशनरी ऑफ जीजस के निदेशक हैं. मिशनरी की स्थापना मुलक्कल ने की थी. वे मुलक्कल के बेहद करीबी भी हैं. शिकायत में एक महिला ने आरोप लगाया था कि पीड़िता का उसके पति के साथ रिश्ता है. इस आरोप को पीड़िता और अनुपमा ने नकार दिया. कदामोत्तु को लिखी गई चिट्ठी में पीड़िता ने लिखा कि मैडेसरी ने उसे बदनाम करने की कोशिश की है. ऐसा करने के लिए उसने इस निजी शिकायत को एक पादरी के साथ साझा किया. पादरी केरल में उस जगह से था जहां पीड़िता का जन्म हुआ था. पीड़िता ने पूछा, “वह चिट्ठी जिसे आपकी निगरानी में गुप्त रखा जाना चाहिए था, फादर एंटनी मैडेसरी के हाथों में कैसे पहुंची” ये सवाल सही और जरूरी भी है क्योंकि मुलक्कल की नई मंडली का मिशनरी ऑफ जीजस से कोई लेना-देना नहीं है. पीड़िता ने लिखा, “फादर एंटनी मैडेसरी एमजे के लिए क्या हैं? आपको इन सबका जवाब देना पड़ेगा.”
ननों का उत्पीड़न तब भी नहीं रुका जब शिकायत और प्रदर्शन की वजह से मुलक्कल के खिलाफ का ये मामला राष्ट्रीय मीडिया की नजरों में आ गया. तीन जनवरी को मंडली ने पांच में से चार ननों का ट्रांसफर ऑर्डर जारी कर दिया. इसमें सिर्फ नीना रोज का नाम शामिल नहीं था. तबादला कुराविलानगढ़ के बाहर किया गया था. नीना को भी एक चिट्ठी मिली जिसमें उन्हें 26 जनवरी को जालंधर बुलाया गया था. इसमें उनसे मंडली के नेतृत्व के सामने पेश होकर उस कॉन्वेंट को छोड़ने के बारे में बताने को कहा गया था जो उन्हें मिला था. किसी भी नन ने मंडली के आदेश का पालन नहीं किया. नौ फरवरी को पांचों ननों ने तबादले के आदेश के खिलाफ एक दिन का प्रदर्शन किया. इसका आयोजन सेव ऑर सिस्टर्स ने किया था. ये एक सामूहिक आंदोलन था जो ननों के सितंबर के प्रदर्शन के दौरान जन्मा, इसने मुलक्कल के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाई.
प्रदर्शन अहम बदलावों के बीच हो रहा था. पांच फरवरी को पोप फ्रांसिस ने स्वीकार किया कि रोमन कैथलिक चर्च में पादरियों और बिशपों द्वारा की जाने वाली यौन हिंसा एक गंभीर समस्या बन गई है. कोट्टायम प्रदर्शन के दिन जालंधर सूबे के प्रमुख एग्नेलो ग्रासिया ने पांचों ननों को लिखित में ये भरोसा दिया कि उन्हें बलपूर्वक कॉन्वेंट से बाहर नहीं किया जाएगा. “जब तक ये मेरे हाथों में है, जालंधर सूबे द्वारा आप लोगों को कुराविलानगढ़ कॉन्वेंट से बाहर करने से जुड़ा कोई कदम तब तक नहीं उठाया जाएगा जब तक कोर्ट केस के लिए आपकी जरूरत है.” फिर भी थोड़ी ही देर में जलंधर सूबे के प्रचार अधिकारी कावुमपुरम ने एक सफाई जारी की. इसमें उन्होंने लिखा कि पाचों ननों को जारी की गई चिट्ठी “ट्रांसफर का आदेश नहीं था” बल्कि एक “आमंत्रण था जिसमें उनसे उन तय समुदायों की ओर लौटने को कहा गया था जहां से वे बिना अनुमति के निकल गई थीं.” उन्होंने आगे लिखा कि ग्रासिया “ने मंडली के आतंरिक मामलों में दखल नहीं दिया है, ऐसे में सही समुदायों की ओर लौटने का आदेश रद्द नहीं हुआ बल्कि बरकरार है.”
ट्रांसफर ऑर्डर प्राप्त करने के बाद अनुपमा ने मीडिया से कहा, “ये कुछ नहीं बल्कि बदले के तहत किया गया तबादला है और चर्च का गेम प्लान हमें अलग-अलग जगहों में भेज देना है.” कावुमपुरम की सफाई से अनुपमा की दृढ़ता नहीं डिगी है. अनुपमा ने मीडिया से 10 फरवरी को कहा, “स्पष्टीकरण हमें मंजूर नहीं है. हम कॉन्वेंट में तब तक रहेंगे जब तक केस समाप्त नहीं हो जाता है.”
पीड़िता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के 7 महीने बीत गए हैं, बावजूद इसके पांचों ननें पीड़िता को कुराविलानगढ़ में अकेले छोड़ने के ख्याल से डरती हैं. जिस दिन मैं सैंट फ्रांसिस मिशन होम गई थी, मेरी बात पीड़िता से नहीं हो पाई थी, हालांकि वह कॉन्वेंट में मौजूद थीं. ननों के मुताबिक पीड़िता दिन दिन भर अपने कमरे में रहती है और हाल ही में इसने बाहर निकलना शुरू किया है. हालांकि, पुलिस को अभी भी आरोपपत्र दाखिल करना है, ननों का मानना है कि आगे होने वाले ट्रायल की वजह से पीड़िता कॉन्वेंट में सुरक्षित नहीं होगी. जोसफिन ने कहा, “अगर हम चले जाते हैं तो उसकी सुरक्षा को खतरा होगा. मंडली में कोई उनका समर्थन नहीं करता है. हम उन्हें इन लोगों के हवाले कैसे छोड़ सकते हैं.”
इन 6 ननों के अलावा कॉन्वेंट में 4 ननें और रहती हैं जिनमें वरिष्ठ अनिल कूवालुर भी शामिल हैं. बाकी की कोई भी नन मुलक्कल के खिलाफ कार्रवाई की मांग का समर्थन नहीं करतीं. नतीजतन, 6 ननों को कॉन्वेंट के भीतर अलगाव का सामना करना पड़ता है. ननों ने कहा कि जब से उन्होंने अपनी शिकायत को सार्वजनिक किया तब से ये सब उनकी जिंदगी में रोजमर्रा का हिस्सा बन गया है. अल्फी ने कॉन्वेंट की बाकी 4 ननों का जिक्र करते हुए कहा, “वे चाहतीं हैं कि हम बिल्कुल भी कुछ न करें.” पीड़िता समेत 6 ननों के पास न तो कोई पोस्ट है न ही कोई ड्यूटी. जोसफिन ने कहा, “जब हम पहले तैनात थे वहां हमारे पास काम था. लेकिन पिछले 6 महीनों से हम अपने कमरों में बंद होकर रह गए हैं... हमारा ये समय बिना कुछ किए दुखी हालत में बीता है. ऐसे में हमने एक किचन गार्डन शुरू करने का प्लान बनाया है. एक व्यक्ति को हमने गार्डन में काम करने के लिए बुलाया लेकिन हमारी मदर ने उसे बाहर कर दिया.” उन्होंने कहा कि कूवालुर ने अपने दावे में कहा कि उन्होंने व्यक्ति को इसलिए बाहर किया क्योंकि वे ननों की सुरक्षा चाहती थीं. “उन्होंने हमसे खुद बगीचा बनाने को कहा. अगर हम पेड़ लगाएं तो सुरक्षित होगा लेकिन बाहर का कोई लगाए तो सुरक्षित नहीं होगा.” कूवालुर ने मझसे कहा कि उन्होंने ननों को इसलिए गार्डन नहीं शुरू करने दिया क्योंकि कदामोत्तु से अनुमति नहीं ली थी.
अलग किए जाने की प्रक्रिया में थोपी गई बदस्तूर निगरानी भी शामिल है. कॉन्वेंट में चौबीस घंटे पुलिस की सुरक्षा रहती है और आने वाले हर व्यक्ति से रजिस्टर में उसकी निजी जानकारी भरवाई जाती है. जोसफिन ने कहा कि आगंतुकों के रजिस्टर को अक्सर बाकी ननें चेक करती हैं. ये ननें वरिष्ठ-जनरल की करीबी हैं. जिस दिन मैं वहां गई थी, जब मैं अनुपमा द्वारा मुझे घर के भीतर बुलाए जाने का इंतजार कर रही थी, एक महिला पुलिस अधिकारी की निगाहें मुझ पर गड़ी हुई थीं. जब मैं बिल्डिंग के सामने तस्वीरें खींचने के लिए गई, पुलिस वाली ने मेरा पीछा किया और शालीन लहजे में पीछे के रास्ते पर इंतजार करने को कहा.
ऐसा लगता है कि द मिशनरी ऑफ जीजस ने अलग तरीके से ननों को प्रताड़ित करना जारी रखा है. ननों के मुताबिक, कॉन्वेंट जानबूझकर ननों को मिलने वाले 500 रुपए के मासिक भत्ते को देने में देर करता आया है. एक तरफ जहां प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लेने वाली ननों को हर महीने की पांच तारीख को ये रकम मिल जाती है, वहीं दूसरी तरफ इन 6 ननों ने आरोप लगाया कि उन्हें ये रकम मिलने में आधा महीने बीत जाता है. इसके लिए भी उन्हें बार-बार गुहार लगानी पड़ती है. अनुपमा ने कहा, “जब हम पैसे की मांग करते हैं, तो वे दावा करते हैं कि पैसे अभी जालंधर से नहीं आए हैं और जब हम फिर इस बारे में जानकारी लेने जाते हैं तो व्यक्ति गायब होता है. वह सिर्फ ये कह कर टाल देते हैं कि वे देख रहे हैं.” आलम ये है कि मंडली ने ननों को मिलने वाला पारम्परिक तोहफा भी नहीं दिया है. अल्फी ने कहा, “हर क्रिसमस पर हर सिस्टर्स को एक गिफ्ट मिलता है. इस क्रिसमस हममें से हर किसी को 1000 रुपए मिलने वाले थे. क्रिसमस और नए साल को महीना बीत गया, लेकिन हमें ये अब तक नहीं मिला है.” कूवालुर ने पैसे मिलने में होने वाली देरी के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि कॉन्वेंट की हर नन से “एक जैसा बर्ताव” किया जाता है.
चिट्ठियों से नन के निजी स्वास्थ्य को लेकर भी मंडली के नेतृत्व की ओर से उदासीनता की भावना का साफ संकेत मिलता है. कोट्टायम के एक हॉस्पिटल की निगरानी में बीमारी का इलाज करवा रही नीना रोज ने दिसंबर 2017 की एक चिट्ठी में लिखा, “मैंने अपने वरिष्ठ टिंसी से इलाज के लिए आर्थिक मदद मांगी और उन्होंने जबाव में कहा कि मैं जालंधर जाकर खुद ये हासिल कर लूं.” लेकिन एंसिटा उरुम्बिल को लिखी गई एक चिट्ठी के जवाब में कदामोत्तु ने दावा किया कि 6 ननों के विरोध के बावजूद वे उनकी मर्जी का ख्याल रख रही हैं. उन्होंने लिखा, “यहां तक की आप और एमजे के कुछ और सदस्य किसी भी हद तक जाकर झूठे सार्वजनिक बयान देने और एमे मंडली की छवि को धूमिल करने के लिए आधारहीन कहानियां बताने में कोई हिचक नहीं महसूस करते... मैं ये सुनिश्चित करने में लगी हूं कि मंडली आप सबको भोजन, रहने की व्यवस्था और इलाज के खर्च जैसे समर्थन देना जारी रखे.”
कुराविलानगढ़ की ननों ने जालंधर सूबे की उनकी मंडली के दबाव के समाने कमजोर पड़ने का कोई संकेत नहीं दिया है. अनुपमा ने मुझसे कहा, “मुझे अभी भी नहीं लगता कि ये गलत था. हम सिर्फ सच के साथ खड़े हुए हैं. हमारी बहन को न्याय चाहिए. हमारी इच्छा बस इतनी ही है. चाहे इसके लिए विरोध करना पड़े या टीवी चैनल डिबेट में जाना पड़े, हमने सिर्फ वही किया है जो मौलिक अधिकार प्राप्त कोई नागरिक करेगा. हमने कभी नहीं सोचा कि ये गलत है और हम कभी भी ऐसा नहीं सोचेंगे.”
(फ्रैंको मुलक्कल और उनके खिलाफ आवाज उठाने वाली केरल की 6 ननों पर की गई तहकीकात का यह तीसरा हिस्सा है. पहला और दूसरा हिस्सा यहां पढ़ें.)