“मोदी खुद तय करते हैं कि वह किस पत्रकार से मिलेंगे”

सितंबर 2011 में मोदी ने जब अहमदाबाद में सद्भावना के बैनर तले तीन दिनों का उपवास किया तो यहां बीजेपी नेता एल के आडवाणी और पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल भी पहुंचे. अजीत सोलंकी/एपी फोटो

मोदी के ऑफिस से इंटरव्यू का अनुरोध करते हुए मैंने कई चिट्ठियां लिखीं. लेकिन जब कोई जवाब नहीं आया तो मैंने उनके जनसंपर्क अधिकारी जगदीश ठक्कर से बात की. उन्होंने मुझे बताया, “आपको पता है, मोदीजी से मिलना बहुत मुश्किल है. वे खुद चुनते और तय करते हैं कि किससे मिलना है.” फिर भी, मैं ठक्कर के साथ अपने प्रयासों में लगा रहा. जब मोदी चीन में एक व्यापारिक दल का नेतृत्व कर रहे थे तब मैंने उन्हें फोन किया और तब भी किया जब मोदी पोरबंदर में महात्मा गांधी की जन्मस्थली पर उपवास पर बैठे थे. ठक्कर ने मुझे भरोसा दिलाया, “आपके सभी संदेश मोदीजी तक ठीक से पहुंचा दिए हैं. उन्हें पता है, आप मिलने की कोशिश कर रहे हैं और उन्होंने आपकी चिट्ठियां पढी हैं. लेकिन उन्होंने इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहा है.” मोदी के सोनगढ़ वाले उपवास से पहले मैंने ठक्कर को एक बार फिर बताया, “मैं मोदी के व्रत में शामिल रहूंगा, पूछिए! क्या मोदी एक घंटे का वक्त मुझे दे सकते हैं?”

अन्य पत्रकारों ने मेरी इस राय से सहमति जताई कि मोदी बहुत कम अखबार या पत्रिकाओं के पत्रकारों से बात करते हैं. जब उन्हें जरूरी लगता है तो वह टीवी चैनलों को इंटरव्यू देना बेहतर समझते हैं. साल 2007 में करण थापर ने सीएनएन-आईबीएन पर मोदी का एक बेहद मशहूर और विवादास्पद इंटरव्यू किया था. थापर ने मुझे बताया कि 18 महीने मोदी को राजी करने में लगे. थापर ने कहा, “मुझे याद है कि मैं उन्हें हर हफ्ते खत लिखता था लेकिन वह कभी जवाब नहीं देते थे. हार कर मैं मोदी के दोस्त अरुण जेटली के पास गया और उन्होंने मोदी को राजी कर लिया.”

थापर का मोदी के साथ 30 मिनट तक होने वाला इंटरव्यू महज तीन मिनट चला पाया. थापर ने प्रशासक के रूप में मोदी के कौशल को मिल रही वाहवाही से अपना पहला सवाल शुरू किया. थापर ने पूछा, “लेकिन फिर भी लोग आपको मुंह पर "सामूहिक हत्यारा" कहते हैं, वे आपके ऊपर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप भी लगाते हैं. क्या आप छवि के संकट का सामना कर रहे हैं?”

मोदी का चेहरा सख्त और लाल हो गया. उन्होंने कुछ अबूझ से शब्द बोले. साफ दिख रहा था कि वह गुस्सा हैं. कुछ ही देर में उन्होंने ब्रेक लेने की बात की और अपने कुर्ते से लैपल माइक हटाकर घोषणा की कि वे इंटरव्यू समाप्त कर रहे हैं और वहां से चले गए. उन्होंने थापर से कहा, “आप यहां आए, दोस्ती बनाई. आपके अपने विचार हैं, आप उसी को दोहराते रहते हैं.”

अचानक से खत्म हुए इस इंटरव्यू को सीनएनए-आईबीएन ने समाचार की तरह बार-बार चलाया- “मोदी इंटरव्यू से भाग गए”. चैनल ने इसे 33 बार दोहराया. थापर ने बताया कि अगले दिन उन्हें मोदी का फोन आया. वह याद करते हैं, “मोदी ने मुझसे पूछा, ‘क्या आप मेरे कंधे पर रख कर अपनी बंदूक चला रहे हैं?’ मैंने कहा, ‘क्या मैंने आपसे नहीं कहा था कि इंटरव्यू पूरा करना बेहतर रहेगा?’ बातचीत से लग रहा था कि वे सहज हैं. उन्होंने कहा कि अगली बार जब वे दिल्ली आएंगे तो साथ डिनर करेंगे और मुझे दोबारा इंटरव्यू देंगे. बातचीत के दौरान शायद उन्होंने, ‘आई लव यू’ भी कहा था.” थापर ने मुझे बताया कि पिछले पांच सालों में उन्होंने मोदी को हर छठे हफ्ते खत लिखा है लेकिन मोदी ने कभी जवाब नहीं दिया.

सोनगढ़ के स्टेज पर बीजेपी के मंत्री और नीति निर्माता बारी-बारी से मोदी को राशन कार्डों, सरकारी स्कूल में खेल के मैदानों और बोरबेल की संख्या बताने लगे, जो मोदी के शासनकाल में जिले को मिले हैं. भीड़ भी मोदी के साथ व्रत कर रही थी और थकी नजर आ रही थी. साथ ही उद्घोषक अक्सर “भारत माता की जय! गुजरात की जय! नरेन्द्रभाई मोदी की जय!” के नारे लगाता और भीड़ वापस से नारे लगाने लगती. मंच से कुछ मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों और महिलाओं ने मोदी के सम्मान में एक कर्कशी आवाज में बेसुरा गाना गाया जो कुछ इस तरह था- “आओ ढोल बजाएं, आओ मेल-मिलाप के ढोल बजाएं, आओ मुख्यमंत्री के लिए ढोल बजाएं.” जब गाना खत्म हो गया तो उद्घोषक ने बताया, “आपके सम्मान में यह खूबसूरत गीत किसी और नहीं बल्कि खुद जिला कलेक्टर आरजे पटेल ने लिखा, बनाया और बजाया है.” लोगों ने ताली बजाई. मोदी जस के तस बने रहे और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

पार्टी के लोगों की कुछ घंटों की चमाचागिरी के बाद, जिसका वैसे तो सीएम के ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, मोदी उठे और कतार में खड़े लोगों से मिलने लगे. वहां खड़े तमाम लोग जोश से भरे थे और बहुतों के हाथों में तोहफे थे. कुछ लोगों के हाथों में शाल या गुलदस्ते भी थे. एक सज्जन अपने हाथों से बनी मोदी की तस्वीर लेकर आए थे. अन्य दो महिलाओं ने मोदी को कढ़ाई कर बनाई तस्वीर दी. मोदी की जैसी प्रशंसा वहां हुई, वह अद्भुत थी.

जब यह साफ हो गया कि सुबह पांच बजे तक मोदी अपना व्रत नहीं तोड़ेंगे और न ही तब तक कुछ बोलेंगे, तो मैंने कांग्रेस द्वारा सोनगढ़ बस स्टैंड पर आयोजित उपवास को देखने जाने का फैसला किया. जब मैं पहली कतार से जाने के लिए खड़ा हुआ तो मोदी ने अपना हाथ ऊपर उठाकर मेरी ओर इशारा किया. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या मोदी मुझे बुला रहे हैं? उन्होंने फिर हाथ हिलाया जैसे कह रहे हों कि, “हां तुम ही”. फिर उन्होंने ठक्कर को इशारा किया जो स्टेज पर पहुंचकर मोदी के मुंह के पास अपना कान लगाकर सुनने लगे. एक या दो मिनट बाद 60 साल के बुजुर्ग ठक्कर दौड़ते हुए मेरी ओर आए. वे कांप रहे थे. मुझे एक क्षण के लिए डर लगा कि वे अपना संतुलन खो देंगे. लेकिन उन्होंने मेरे हाथ पकड़ लिया और हांफते हुए कहा, “मोदीजी आपसे मिलेंगे और साक्षात्कार भी देंगे, लेकिन आज नहीं. उन्हें व्रत के लिए मंच पर बैठना है. गांधीनगर के उनके ऑफिस में अगला शुक्रवार कैसा रहेगा?” मैंने स्टेज पर मौजूद मोदी को देखा. उन्होंने अपना सिर "हां" में हिलाकर मुझे इशारा किया और फिर मेरी ओर अपना हाथ उठाया.

(द कैरवैन के मार्च 2012 अंक में प्रकाशित लेख का अंश. पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)