भारत में शिक्षा लंबे समय से गहरे संकट में रही है. स्कूलों में लगभग सबका नामांकन होता है लेकिन अध्ययनों से पता चला है कि देश के कक्षा 5 के आधे से अधिक छात्र कक्षा 2 की किताबें नहीं पढ़ सकते. उच्च शिक्षा खराब नामांकन और पहुंच, कम शैक्षिक प्रासंगिकता और बुनियादी ढांचे की कमी से जूझ रही है, यहां तक कि निजी संस्थानों में बढ़ोतरी ने व्यावसायीकरण को नियंत्रण से बाहर कर दिया है. भारत में 220 से अधिक निजी विश्वविद्यालय हैं जो भारत के कुल उच्च शिक्षा नामांकन का 61 प्रतिशत हैं, लेकिन उन्हें फैकल्टी के वेतन या भर्ती के लिए सरकारी मानदंडों का पालन नहीं करना पड़ता है. कई तकनीकी और प्रोफेशनल संस्थानों में भारी भ्रष्टाचार है जो व्यापम जैसे घोटालों में सामने आया है. आलोचकों को लगा कि 38 साल की ईरानी का कोई अकादमिक अनुभव नहीं है इसलिए वह इन चुनौतियों से निपटने के योग्य नहीं हैं. उन्होंने ईरानी पर जमकर हमला किया.
कांग्रेस के संचार प्रमुख अजय माकन ने ट्वीट किया, “मोदी की क्या कैबिनेट है?” शिक्षा मंत्री (जिनके जिम्मे शिक्षा की देखभाल है) स्मृति ईरानी ग्रैजुएट भी नहीं है! चुनाव आयोग की साइट पर उनके हलफनामे को देखें- पेज नंबर 11 पर. कार्यकर्ता और अकादमिक मधु किश्वर ने मोदी को अपनी ट्वीट्स में संबोधित किया, "@narendramodi स्मृति ईरानी महज 12वीं पास हैं, वह मॉडल से टीवी सीरीयल की बहू बन गईं. क्या भारत के शिक्षा मंत्री के लिए इतनी शिक्षा पर्याप्त है?” किश्वर के एक अन्य ट्वीट ने एक गहरी चिंता का खुलासा किया: “@narendramodi शिक्षा मंत्रालय जैसे अहम जगह पर किसी मजबूत आदमी को होना चाहिए जो मुख्यमंत्रियों, वीसी और अनुसंधान संस्थान से निपट सके, जो वामपंथ के गढ़ हैं.
किश्वर, संघ में और कई बीजेपी समर्थकों के बीच व्याप्त चिंता की आवाज उठा रही थीं कि ईरानी के पास काफी हद तक लेफ्ट झुकाव वाले अकादमिक और नौकरशाही प्रतिष्ठान को लोहा लेने और राइट विंग की शिक्षा परियोजना को लागू करने की क्षमता और बल नहीं है.
जैसे ही विवाद कम हो रहा था किश्वर ने ईरानी की शैक्षिक योग्यता में विसंगतियों के बारे में ट्वीट किया, जिनके बारे में ईरानी ने 2004 और 2014 से अपने चुनावी हलफनामे में दावा किया था. उनके हलफनामे में लिखा था, "बीए 1996 दिल्ली विश्वविद्यालय (पत्राचार स्कूल)." 2014 में उन्होंने लिखा, "बैचलर ऑफ कॉमर्स पार्ट- 1, स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (पत्राचार), दिल्ली विश्वविद्यालय, 1994." विपक्षी दलों ने ईरानी पर चुनाव आयोग से झूठ बोलने का आरोप लगाया और दावा किया कि उन्हें अयोग्य ठहराया जाना चाहिए. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने एक लिखित बयान में कहा कि यह मुद्दा "शैक्षिक योग्यता रखने का नहीं, चाहे वह 5वीं कक्षा, 8वीं कक्षा पास, पीएचडी या एमए हैं." उन्होंने कहा कि इसके बजाय यह "2014 के हलफनामे में बदलाव करना" है, जो एक गंभीर अपराध है."
जल्द ही एक याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मामला दर्ज किया जिसमें मांग की गई कि ईरानी स्नातक या नामांकन का प्रमाण प्रस्तुत करे. (अक्टूबर में अदालत ने ईरानी के खिलाफ शिकायत खारिज कर दी.)
गांधीनगर में एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि ईरानी 2004 से ही फॉर्म भरने में लगातार लापरवाही कर रही थीं, तब उन पर "नजदीक से ध्यान देने के लिए कोई नहीं था." लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि एक राजनीतिक युद्ध के मामले में, जैसे कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है, "तकनीक भी प्रतिद्वंद्वी को गिराने के लिए तीर बन सकता है."
ज्यादातार प्राप्त जानकारी के मुताबिक ये बात पार्टी से बाहर आई थी. कई बीजेपी नेताओं और आरएसएस के सदस्यों ने मुझे बताया कि एक प्रतिद्वंद्वी नेता था जिसने जानकारी लीक की थी. गांधीनगर में वरिष्ठ बीजेपी नेताओं के करीबी, जो इस मामले में बीजेपी की आंतरिक जांच में शामिल थे, उन्होंने मुझे बताया, “एक महिला जिन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली उन्होंने बदले की भावना में ऐसा किया.” एक लोकप्रिय हैंडल वाले एक ट्विटर यूजर ने मुझे यह भी बताया कि महिला ने मुझे "ट्विटर पर इसे सीधे पोस्ट करने के लिए कहा था."
टेलीविजन चैनलों ने निरंतर इस मुद्दे पर चर्चा की. फिर भी, मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि आंतरिक रूप से, ईरानी ने अपना कार्य की सकारात्मक शुरुआत की है. उन्होंने पहली बार शास्त्री भवन की वसंत ऋतु में होने वाली सफाई की निगरानी की, जहां से मंत्रालय काम करता है और डेस्क और स्टोरेज ठीक किया. एक नौकरशाह जो बाद में किसी और मंत्रालय में चली गईं ने कहा, “यह निःस्वार्थ था, किसी ने हमारे लिए कभी यह नहीं किया था और हम सच में खुश थे.” उन्होंने यह भी बताया कि पहले कुछ हफ्ते तो ईरानी आसानी से सबके पास आती थी, अक्सर अधिकारियों, विशेष रूप से महिलाओं तक आतीं, कुछ पूछतीं, साड़ी की तारीफ करतीं या अन्य बातों का आदान-प्रदान करती.
लेकिन जैसे ही उनकी शैक्षणिक योग्यता पर हमले शुरू हुए, ईरानी की प्रारंभिक मित्रता समाप्त हो गई. जल्द ही ऑफिस में एक साफ पदक्रम स्थापित हो गया. मंत्रालय में एक स्कूल शिक्षा सलाहकार ने मुझे बताया, "केवल ऊपर के संयुक्त सचिव और अधिकारी उसके कमरे में जा सकते थे. पिछले मंत्रियों ने हमसे ऐसा व्यवहार नहीं किया था. "उन्होंने कहा कि ईरानी किसी पर भरोसा नहीं कर रही थी और हर ज्ञापन, दस्तावेज और निर्णय को देखने और नियंत्रित करने लगी थीं. अमेठी में प्रचार के मामले में काम करने वाला माइक्रो-मैनेजमेंट ईरानी के लिए यहां उल्टा साबित हुआ.
कई अधिकारियों ने शिकायत की कि ईरानी में दिशा की कमी थी और उन्हें एक परियोजना से दूसरी परियोजना में फंसना पड़ रहा था. इस वर्ष जून में लॉन्च होने वाले एक स्कूल स्वयंसेवी कार्यक्रम ‘विद्यांजली’ के लिए एक बैठक में सलाहकार ने पंजाब के शिक्षा मंत्री का अपने पड़ोसी के साथ मजाक याद करते हुए कहा, "बहन जी हर महीने कुछ नया लॉन्च करती हैं." शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने पर काम करने वाले एक अधिकारी ने मुझे बताया कि ईरानी उन्हें "कम पढ़ी लिखी" और "ब्रीफिंग को लेकर उदास" लगीं, सिवाय इसके कि उन्हें संसदीय प्रश्नों का उत्तर देना हो या प्रधान मंत्री कार्यालय के साथ उनकी बैठक हो. मंत्रालय के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा, “उसकी याददाश्त अच्छी थी इसलिए वह आंकड़ों के मामले में ठीक थीं लेकिन प्राथमिकता और नेतृत्व के मामले में हमें निराशा हाथ लगी.”
ईरानी के तहत शिक्षा मंत्रालय मोदी सरकार के लिए सबसे संघर्षपूर्ण साबित हुआ. कम से कम पांच संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को कार्यालय से दो साल में हटा दिया गया. इसके उलट, यूपीए- 2 सरकार के पूरे पांच सालों में केवल दो अधिकारी ही हटाए गए थे. कार्यालय में निराशा तब गहराई तक पहुंच गई जब ईरानी ने मंत्रालय के सचिव को हटा दिया. सबसे उच्च अधिकारी, एक अनुभवी नौकरशाह वृंदा सरप जो कई लोगों की सलाहकार थीं और कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के बीच जिनका व्यापक सम्मान था. स्कूल सलाहकार ने कहा, “वह 20 सालों से वहां थीं और संस्थागत निरंतरता लाई थीं जो लंबी अवधि की शिक्षा नीतियों के लिए जरूरी है. जब उन्हें हटाया गया तो सब बहुत निराश थे और हमने स्मृति के लिए सम्मान खो दिया.”
ईरानी का प्रदर्शन इसलिए भी खराब रहा क्योंकि उनके पास राज्यों में सीमित नेटवर्क था. बीजेपी शासित राज्य के एक शिक्षा सचिव ने मुझे बताया, “वह एक स्पष्ट नेता हैं जो जब चाहें तब बहुत उदार हो सकती हैं. लेकिन उन्होंने राज्य शिक्षा टीमों के साथ संबंध बनाने की जहमत नहीं उठाई.” विद्यांजली ऐप लॉन्च करने के लिए एक जून के कार्यक्रम पर मंत्रालय को 1 करोड़ रुपए का खर्च आया, लेकिन पंजाब और जम्मू-कश्मीर से केवल दो शिक्षा मंत्रियों ने इसमें भाग लिया. कार्यक्रम में शामिल स्कूल सलाहकार ने मुझे बताया, “बीजेपी शासित राज्यों के शिक्षा मंत्रियों द्वारा भी उन्हें गंभीरता से लिया जाना मुश्किल था.” कुछ अधिकारियों को लगा कि ईरानी के लिए लोगों का उपहास शायद उनकी "डरावनी" प्रवृति के वजह से था. अब किसी और मंत्रालय में काम कर रहे नौकरशाह ने बताया, "एक तरफ उनके लिए सहानुभूति थी और दूसरी तरफ लोग उनसे ऑर्डर नहीं लेना चाहते थे क्योंकि पहले वह एक अभिनेत्री थीं."
ईरानी को लेकर शिक्षाविद बेहद कठोर थे. आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों ने उन्हें "अपमानजनक", "बेहद उत्तेजित" और "विशेषज्ञता या अनुभव के बगैर घमंडी" व्यक्ति बताया. आईआईटी दिल्ली के एक वरिष्ठ शिक्षाविद ने कहा कि ईरानी के निजी कर्मचारियों ने उनसे ईरानी को "श्रीमती ईरानी" नहीं बल्कि "मंत्री" कहने का निर्देश दिया था. हरियाणा के सूरजकुंड में कुलपतियों की एक बैठक में ईरानी ने इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं देने के लिए एक वरिष्ठ शिक्षाविदों को झाड़ लगा दी. इन शिक्षाविदों में से एक ने मुझसे ईरानी का वर्णन करते हुए कहा कि "वह ताकत दिखाने के अलावा बद दिमाग" हैं. आईआईटी दिल्ली के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने कहा कि यूपीए के शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह और वाजपेयी के शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी भी जिद्दी थे लेकिन उनमें पढ़े-लिखे लोगों से पेश आने का सलीका था. मुझे शैक्षणिक योग्यता के बिना घमंड से चूर व्यक्ति का बॉस होना अच्छा नहीं लगा जिन्हें हर बात में बखेड़ा खड़ा करने की आदत थी.
(द कैरवैन के नवंबर 2016 अंक में प्रकाशित कवर स्टोरी का अंश. पूरी प्रोफाइल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)