2023 मध्य प्रदेश चुनाव, एक नजर

अभय रेजी इलस्ट्रेशन Paramjeet Singh
24 November, 2023

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मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान हुआ, जिसमें बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अठारह साल के कार्यकाल के खिलाफ कांग्रेस और कई छोटे संगठनों ने लड़ाई लड़ी. मध्य प्रदेश में चुनाव एक जटिल मामला है. प्रदेश में 55 जिलों में 230 निर्वाचन क्षेत्र हैं और कुल 2,533 उम्मीदवारों का भाग्य 5.6 करोड़ से अधिक मतदाता तय करेंगे. इस लेख में कारवां ने चुनाव के प्रमुख दलों, क्षेत्रों, उम्मीदवारों और निर्वाचन क्षेत्रों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है.

उम्मीदवार
मध्य प्रदेश देश के उन पहले राज्यों में से एक था, जहां भारतीय जनसंघ ने आपातकाल के तुरंत बाद 1977 में जनता पार्टी के अन्य दलों के सहयोग से राज्य में जीत हासिल कर अपनी विशाल उपस्थिति दर्ज की. तब से राज्य ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लंबे कार्यकाल देखे हैं, जो मजबूत सत्ता विरोधी लहर से बचे रहे. एक दशक के कांग्रेस शासन के बाद 1990 में बीजेपी सत्ता में लौट आई थी, जिसके बाद 1993 से 2003 तक कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के शासन में एक और दशक बीता.

2003 का चुनाव कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ. उस समय तक, उभरती हुई बहुजन समाज पार्टी के कारण दलित समुदायों के बीच कांग्रेस का प्रभाव कम हो गया था. अन्य पिछड़ा वर्ग, जो राज्य की लगभग आधी आबादी है, के बीच इसका समर्थन बीजेपी को चला गया. भगवा पार्टी ने उमा भारती, बाबूलाल गौर और चौहान जैसे ओबीसी नेताओं को राज्य में तैयार किया, जिन्होंने तेजी से मुख्यमंत्री पद संभाला, हाल ही के एक लेख में इस प्रवृत्ति पर चर्चा की गई है.

2008 के चुनाव में भारती ने अपना खुद का राजनीतिक दल, भारतीय जन शक्ति पार्टी, लॉन्च की थी, जिसने केवल 5 सीटें हासिल कीं, लेकिन वोट-शेयर प्रतिशत में लगभग इतनी ही सीटें छीन लीं. बीजेपी ने फिर भी 143 सीटों की शानदार बढ़त के साथ जीत हासिल की, जो कांग्रेस से दोगुने से भी अधिक थी. आगे आने वाले तीन चुनावों में कुछ परिवर्तन साफ देखे गए. राज्य की इक्कीस प्रतिशत से अधिक आबादी वाले आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, बसपा और समाजवादी पार्टी का प्रभाव लगातार कम होता गया, जिससे राज्य में अनिवार्य रूप से द्विध्रुवीय मुकाबला हो गया. कांग्रेस ने वोट शेयर में स्पष्ट बढ़त तो हासिल की, जो 2008 में 32.39 प्रतिशत से बढ़कर 2013 में 36.38 प्रतिशत और 2018 में 40.89 प्रतिशत हो गई, लेकिन कभी भी बीजेपी से आगे नहीं निकल पाई. बीजेपी का वोट शेयर कम होने के बजाय, चालीस प्रतिशत के आंकड़े के आसपास ही स्थिर रहा है और सरकार सत्ता विरोधी लहर से अप्रभावित रही, इसके बावजूद कि चौहान अब देश में सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक हैं.

बीजेपी के लिए 2023 में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव यह साबित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी पकड़ अभी भी हिंदी बेल्ट में बनी हुई है. हालांकि, पार्टी में मुख्यमंत्री को लेकर विभाजित मत उभर कर सामने आ रहे हैं, जिसके चलते चौहान को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित करना आसान नहीं है और यहां तक की मोदी भी भाषण में उनका नाम लेने से बच रहे हैं. इस तरह दरकिनार करना और मोदी की बीजेपी ने अपने कई वरिष्ठतम ओबीसी नेताओं के साथ जो किया है, उन सभी के मामलों की समानता, कारवां के लेख में बताई गई है.

पार्टी ने अपने अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी और तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा. कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ को चेहरा बनाकर एक अभियान चलाया जा रहा है. जबकि जाति जनगणना के लिए कांग्रेस के आह्वान का उस राज्य में ज्यादा असर पड़ने की संभावना नहीं है, जहां मंडल के बाद बीजेपी शासन के 18 साल बाद भी ओबीसी के बीच जागरूकता नहीं बढ़ी है और जहां पार्टी ने सक्रिय रूप से अपने ओबीसी नेतृत्व को कमजोर कर दिया है. ऐसे में क्या कांग्रेस को अभी भी इस मुद्दे पर चुनाव हारना है?

चुनाव यह भी तय करेगा कि क्या बसपा और जीजीपी - जो चुनावी सहयोगी हैं - की गिरावट अंतिम चरण में है या क्या उनके सामाजिक-न्याय के मुद्दे को हिंदू-राष्ट्रवाद से भरे चुनावी माहौल में जगह मिल सकती है. इस बीच, एसपी को अकेले चुनाव में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा. पार्टी ने कमलनाथ और कांग्रेस पर लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दल, भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन, जिसके दोनों दल सदस्य हैं, के भीतर विधानसभा चुनावों में सीट बंटवारे पर सहमति से मुकरने का आरोप लगाया. गठबंधन के भीतर भी, इस विवाद के कारण आगामी आम चुनावों के लिए इसकी मजबूती पर सवाल उठने लगे – जिसे कांरवा के एक अन्य लेख में बताया गया है.

क्षेत्र

मध्य प्रदेश को मोटे तौर पर छह सामाजिक-आर्थिक और चुनावी क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है. राज्य के उत्तर में, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर स्थित चंबल क्षेत्र, 230 सीटों में से 34 सीट इसी क्षेत्र में है. यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कांग्रेस ने हमेशा से अच्छा प्रदर्शन किया है, जो कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनसे पहले उनके पिता माधव राव सिंधिया के नेतृत्व का नतीजा है. 2020 में बीजेपी में शामिल होकर कमलनाथ की सरकार गिराने वाले सिंधिया इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेता, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस बार दिमनी निर्वाचन क्षेत्र में चुनावी मैदान में उतरे हैं. उनके निर्वाचन क्षेत्र की एक ग्राउंड रिपोर्ट से पता चला कि कैसे सिंधिया के दलबदल और यहां प्रभाव रखने वाले गुर्जर और राजपूत समुदायों के बीच जातिगत झगड़े ने तोमर को मुश्किल में डाल दिया था.

सिंधिया के बाहर निकलने से कांग्रेस के विपक्ष के नेता गोविंद सिंह भी चंबल में सबसे बड़े व्यक्ति के रूप में उभरे, जो लहार निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे है. उनके अलावा, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह, अपने पिता के पारंपरिक गढ़, चंबल के गुना जिले के राघौगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. इनमें से लगभग हर नेता राजपूत समुदाय से है, लेकिन अन्य नेताओं ने भी चंबल में अपनी राजनीतिक जगह बनाने के लिए लड़ाई लड़ी है. यह उन क्षेत्रों में से है जहां बसपा ने मध्य प्रदेश में सबसे अधिक सफलता हासिल की थी, 1990 के दशक में लगभग पांच सीटें जीतीं और कुछ सीटों पर 20 से 40 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ बाघेलखंड क्षेत्र है - जिसे बुन्देलखण्ड और विन्ध के उप-क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है - जिसमें 56 सीटें हैं, जो राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र है. यह वह क्षेत्र है जहां साल 2000 की शुरुआत से ही बीजेपी का दबदबा रहा है और 2008 के बाद से हर चुनाव में पार्टी ने 35 से अधिक सीटें जीती हैं. क्षेत्र के वरिष्ठ बीजेपी नेताओं में राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष वीडी शर्मा शामिल हैं. इसके अलावा, कांग्रेस कभी भी बाकी सीटें मजबूत नहीं कर पाई, जिनमें से कुछ सीटें बसपा के पास गईं, जिसकी यहां मजबूत उपस्थिति है और कुछ सपा के पास भी. बड़ी अनुसूचित जाति और ओबीसी आबादी वाला यह क्षेत्र राज्य के सबसे गरीब हिस्सों में से एक है और यहां तक ​​कि इसे लेकर अलग राज्य की मांग भी उठती रही है. यहां देखने लायक एक विधानसभा क्षेत्र सागर जिले का रेलवे शहर बीना है, जहां बसपा के कमजोर होने के कारण चुनाव काफी करीबी हो गया, 2018 में बीजेपी के उम्मीदवार महेश राय केवल छह सौ वोटों से जीते.

राज्य का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र और एक और क्षेत्र जहां बीजेपी लगातार कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन करती है, वह है महाकौशल. यह क्षेत्र महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा पर है और इसमें 42 विधासभाएं आती हैं. राज्य के आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र से है और यह जीजीपी का पारंपरिक गढ़ रहा है. हालांकि हाल के वर्षों में उनकी पकड़ कमजोर हो रही है, लेकिन बसपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन उनकी संभावनाओं को फिर से मजबूत कर सकता है. यहां आरक्षित अनुसूचित जनजाति निर्वाचन क्षेत्रों की अधिकता के बावजूद, महाकौशल के शहरी और गैर-आदिवासी हिस्से राज्य के कुछ वरिष्ठतम राजनेताओं से जुड़े रहे हैं, जिनमें कमलनाथ, जो छिंदवाड़ा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं; प्रह्लाद सिंह पटेल, एक केंद्रीय मंत्री और राज्य में बीजेपी के सबसे वरिष्ठ ओबीसी नेताओं में से एक, जिन्हें नरसिंहपुर निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा गया है और बीजेपी की राज्य इकाई के पूर्व प्रमुख राकेश सिंह शामिल हैं.

भगवा पार्टी ने एक यात्रा आयोजित करके और गोंडवाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती की मूर्तियों का निर्माण करके क्षेत्र में आदिवासी समर्थन इकट्ठा करने की कोशिश की है. जबलपुर उत्तर का निर्वाचन क्षेत्र देखने लायक है क्योंकि 2018 में कांग्रेस ने यहां एक निर्दलीय उम्मीदवार से लगभग छह सौ से भी कम वोटों से जीत हासिल की थी.

मध्य प्रदेश की अन्य प्रमुख आदिवासी बेल्ट निमाड़ है. यहां से 38 विधायक आते हैं. इनमें से 18 अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित हैं. यह मध्य प्रदेश बीजेपी के सबसे वरिष्ठ आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते का क्षेत्र है, जिन्हें 1990 के दशक की शुरुआत में केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में वरिष्ठ पद पर रहने के बावजूद इस विधानसभा से मैदान में उतारा गया था. इस क्षेत्र में भी जीजीपी की काफी उपस्थिति है, अन्य हिस्सों में गोंड समुदाय के लिए आरएसएस से संबद्ध संगठन अखिल भारतीय गोंड संघ और अन्य समान संगठनों को कुलस्ते के संरक्षण के कारण यह दल समाप्त हो गया है. निमाड़ की राजपुर सीट पर भी पिछले चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिली थी. निमाड़ क्षेत्र पर नजर रखना ज़रूरी है क्योंकि राज्य में जिसकी सरकार बनती है, उसी दिशा में इसका झुकाव होता है. जब कांग्रेस राज्य भर में लाभ कमाती है, तो यहां भी लाभ हासिल करती है - जैसा कि 2008 में हुआ था. अगर कोई दल राज्य में जीतता है, तो वह निमाड़ भी जीतता है, जैसा 2018 में हुआ.

भोपाल संभाग, 25 निर्वाचन क्षेत्रों के छोटे आकार के बावजूद बीजेपी का पूर्ण गढ़ बना हुआ है. 2003 के बाद से हर चुनाव में, कांग्रेस कभी भी यहां बीजेपी की उपस्थिति को कम नहीं कर पाई है और अपने सबसे अनुकूल वर्षों में भी प्रतिद्वंद्वियों की बमुश्किल आधी सीटें हासिल कर पाई है. चौहान इस क्षेत्र की बुधनी सीट से चुनाव लड़ते हैं, जो कि नर्मदापुरम शहर के पास नदी के उस पार एक ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जिसे पहले होशंगाबाद कहा जाता था, जिसका नाम उनकी सरकार ने बदल दिया है. कारवां की ग्राउंड रिपोर्ट से पता चलता है कि इस क्षेत्र में सत्ता विरोधी लहर एक वास्तविकता है, लेकिन कांग्रेस ने चौहान के खिलाफ कमजोर उम्मीदवार खड़ा किया है. दो दशकों में अपनी चरम सत्ता विरोधी लहर के बावजूद भी यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कांग्रेस को मोदी के भारी प्रचार अभियान के चलते चौहान से ध्यान भटकाने के कारण संघर्ष करना पड़ सकता है. राजघर जिले की ब्यावरा सीट पर पिछले विधानसभा चुनावों में अविश्वसनीय रूप से कड़ी प्रतिस्पर्धा देखी गई थी.

मालवा क्षेत्र, जिसमें बीजेपी की लंबी और ऐतिहासिक उपस्थिति है, इस बात को दर्शाती है कि मध्य प्रदेश में हवाएं किस दिशा में चल रही हैं. उन चुनावों में जहां बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया है, मालवा की 35 सीटें लगभग पूरी तरह से हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी के पास चली गईं. जब कांग्रेस को राज्य में बढ़त मिली तो मालवा में सीटें दोनों पार्टियों के बीच लगभग बराबर-बराबर बंट गईं. इस क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर, इंदौर लंबे समय से संघ परिवार की राजनीति का अहम केंद्र रहा है. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय इंदौर 1 निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं. मध्य प्रदेश के इन शहरी केंद्रों के बाहर, मालवा की बड़ी एससी और ओबीसी आबादी कृषि संकट से गहराई से प्रभावित हुई है, जिस कारण मंदसौर में बेहतर फसल कीमतों के लिए आंदोलन के दौरान 2017 में छह किसानों की पुलिस गोलीबारी जैसी घटनाएं हुई.

मंदसौर जिले की सुवासरा सीट 2018 में कांग्रेस ने महज 350 वोटों के अंतर से जीती थी. कृषि संकट का असर राऊ जैसे निर्वाचन क्षेत्रों पर पड़ना तय है- राज्य में कांग्रेस के वरिष्ठ ओबीसी नेताओं में से एक, जीतू पटवारी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. मध्य प्रदेश में ऐसी सीटें बड़ी संख्या में हैं जो हमेशा राज्य के अनुरूप मतदान करती हैं. प्रमुख बड़ी सीटें, जिन्होंने छह से अधिक चुनावों में इस पैटर्न को बनाए रखा है, उनमें खरगोन, निवास, बैतूल, मनावर और ग्वालियर पूर्व शामिल हैं.

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